Congress Chintan Shivir: कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने देश में ‘डर के माहौल’ और ‘ध्रुवीकरण’ को लेकर शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा प्रहार किया और आरोप लगाया कि उनके ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ का मतलब कुछ और नहीं बल्कि अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करना एवं असल मुद्दों से ध्यान भटकाना है. उन्होंने कांग्रेस के ‘नवसंकल्प चिंतिन शिविर’ की शुरुआत के मौके पर पार्टी में बड़े सुधारों के लिए ‘असाधारण फैसले’ करने पर जोर दिया और पार्टी नेताओं का आह्वान किया कि वे ‘विशाल सामूहिक प्रयासों के जरिये पार्टी में नयी जान फूंकें क्योंकि अब पार्टी का कर्ज उतारने का समय आ गया है.
उनके संबोधन के बाद कांग्रेस के चिंतन शिविर की शुरुआत हुई. सोनिया गांधी ने कहा, ‘‘ चिंतिन शिविर हमें यह अवसर देता है कि हम देश के सामने खड़ी उन चुनौतियों पर चर्चा करें जो भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की नीतियों का परिणाम हैं.’’उन्होंने कहा कि इस शिविर में राष्ट्रीय मुद्दों और संगठन पर ‘बोल्ड चिंतन’ और पार्टी एवं संगठन के बारे में सार्थक आत्मचिंतन होगा. कांग्रेस अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘यह स्पष्ट हो गया है कि प्रधानमंत्री और उनके साथियों की ओर से ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ के जो नारे दिए जाते हैं उनका क्या मतलब है? इसका मतलब निरंतर ध्रुवीकरण और लोगों को डर एवं असुरक्षा के माहौल में रहने के लिए मजबूर करना है.’’ यह भी पढ़ें: Gujarat: तीन दिवसीय कांग्रेस 'चिंतन शिविर' में राहुल गांधी को किया गया आमंत्रित
उन्होंने आरोप लगाया कि ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ का मतलब अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने, उनका उत्पीड़न करने और अक्सर उन्हें कुचलने से है जो हमारे समाज का अभिन्न हिस्सा हैं और हमारे गणराज्य के बराबर के नागरिक हैं. उन्होंने कहा कि सरकार के ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ का मतलब हमारे समाज की पुरानी विविधता का उपयोग हमें बांटने के लिए करना है. मतलब राजनीतिक विरोधियों को डराना धमकाना, उन्हें बदनाम करना और सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग कर उन्हें जेल में डालना है. सोनिया गांधी के मुताबिक, इसका मतलब लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता एवं पेशेवरपन को खत्म करना भी है.
उन्होंने दावा किया कि ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन का मतलब इतिहास को नए सिरे से सामने रखना, जवाहलाल नेहरू जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को कमतर दिखाना और उनके योगदान, उपलब्धियों एवं बलिदान को भुलाना है. इसका मतलब महात्मा गांधी के हत्यारे और उनके विचारकों का महिमांडन करना है...संविधान के सिद्धांतों और न्याय, स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता जैसे बुनियादों को कमजोर करना है.
सोनिया गांधी ने कहा कि सरकार के ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ का मतलब दलित आदिवासी, और महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचारों को लेकर आंखें मूंदना है, नौकरशाही, कारपोरेट समूह और मीडिया में भय पैदा करना है. उन्होंने कहा, इसका मतलब ध्यान भटकाने की कोशिश करना और जब मरहम लगाने की जरूरत हो तो चुप्पी साध लेना है. उन्होंने दावा किया कि नफरत की चिन्गारी भड़काई जा रही है जिससे लोगों के जीवन पर बुरा असर हुआ है तथा इसके गंभीर सामाजिक दुष्परिणाम भी सामने आए हैं. सोनिया गांधी के अनुसार, देश के ज्यादातर नागरिक शांति और सद्भाव के माहौल में रहना चाहते हैं, लेकिन भाजपा लोगों को टकराव की स्थिति में रखना चाहती है. अर्थव्यवस्था की स्थिति का उल्लेख करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि नफरत और कट्टरता के माहौल ने आर्थिक बुनियाद को हिलाकर रख दिया है.
उनके मुताबिक, नवंबर, 2016 में नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था लुढ़कती चली गई, ज्यादातर छोटे एवं मझोले उद्योग संकट में हैं, बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ गई है और स्थिति यह है कि ज्यादातर लोगों ने नौकरी की तलाश छोड़ दी है. उन्होंने मनरेगा और खाद्य सुरक्षा कानून का भी उल्लेख किया तथा महंगाई के मुद्दे को लेकर सरकार पर निशाना साधा. कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ‘‘हमारे महान संगठन की ओर से समय-समय पर लचीलेपन की उम्मीद की जाती रही है. एक बार फिर हमसे उम्मीद की जा रही है कि हम अपने साहस, हौंसले और समर्पण की भावना का परिचय दें.’’ सोनिया गांधी ने कहा, ‘‘हमारे संगठन के समक्ष परिस्थितियां अभूतपूर्व हैं. असाधारण परिस्थितियों का मुकाबला असाधारण तरीके से किया जाता है. इस बात के प्रति मैं पूरी तरह सचेत हूं.’’
उनका कहना था, ‘‘हर संगठन को न केवल जीवित रहने के लिए, बल्कि आगे बढ़ने के लिए भी समय समय पर अपने अंदर परिवर्तन करने होते हैं. हमें सुधारों की सख्त जरूरत है. रणनीति में बदलाव की जरूरत है. रोजाना काम करने के तरीके में परिवर्तन की जरूरत है. यह सबसे बुनियादी मुद्दा है.’’
उन्होंने कहा ‘‘मैं यह भी जोर देकर कहना चाहती हूं कि विशाल सामूहिक प्रयासों से ही हमारा पुनरुत्थान हो सकता है. वह सामूहिक विशाल प्रयास न टाले जा सकते हैं, न टाले जाएंगे.’’ सोनिया गांधी ने कांग्रेस नेताओं का आह्वान किया, ‘‘हमारे लंबे और सुनहरे इतिहास में आज ऐसा समय आया है जब हमें अपनी निजी आकांक्षाओं को संगठन के हित के अधीन रखना होगा. पार्टी ने हमें बहुत कुछ दिया है. अब समय है कर्ज उतारने का. मैं समझती हूं कि इससे आवश्यक कुछ नहीं है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं आप सबसे आग्रह करती हूं कि अपने विचार खुलकर रखें. लेकिन सिर्फ संगठन की मजबूती, दृढ़निश्चय और एकता का संदेश बाहर जाना चाहिए.’’ उन्होंने यह भी कहा, ‘‘हमें मिली नाकामियों से हम बेखबर नहीं हैं. न ही हम उन संघर्ष से बेखबर हैं जो हमें करना है और जीतना है. हम सामूहिक रूप से प्रण लेने के लिए एकत्र हुए हैं.’’ सोनिया गांधी ने कहा, ‘‘हम अपनी पार्टी को उसी भूमिका में लाएंगे जो पार्टी ने सदैव निभाई है और जिस भूमिका की उम्मीद मौजूदा हालात में जनता हमसे करती है.’’