नयी दिल्ली, 10 अप्रैल दिल्ली की एक अदालत ने श्रद्धा वालकर हत्याकांड मामले में एक समाचार चैनल पर प्राथमिकी से संबंधित सामग्री के किसी भी रूप में इस्तेमाल पर सोमवार को रोक लगा दी।
मामले में दाखिल आरोप पत्र के मुताबिक आरोपी आफताब अमीन पूनावाला ने कथित तौर पर अपनी लिव इन पार्टनर वालकर की पिछले साल 18 मई को हत्या कर दी थी और शव के कई टुकड़े कर दक्षिण दिल्ली के महरौली स्थित अपने घर के फ्रीज में करीब तीन सप्ताह तक छिपाए रखे थे।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश राकेश कुमार सिंह की ‘लिंक कोर्ट’ यहां‘आज तक’ और एक अन्य मीडिया चैनल को मामले में प्राथमिकी के संबंध में किसी भी सामग्री का प्रसारण नहीं करने का आदेश जारी करने के संबंध में दिल्ली पुलिस द्वारा दायर एक आवेदन पर सुनवाई कर रही थी।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ अगर तत्काल आदेश पारित नहीं किया गया तो आवेदन ही निष्प्रभावी हो जाएगा। इस अदालत का मानना है कि अगली तारीख तक ‘आज तक’ समाचार चैनल प्राथमिकी से संबंधित किसी भी सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल न करे। विस्तृत सुनवाई के लिए मामले को 17 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध किया जाता है।’’
अदालत ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21 किसी व्यक्ति के जीवन तथा उसकी स्वतंत्रता की रक्षा करने के साथ ही ऐसे व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक अवस्था के संरक्षण पर भी जोर देता है। किसी हत्या के मामले से संबंधित संवेदनशील जानकारी का प्रसार निश्चित तौर पर अभियुक्तों और पीड़ित के परिवार पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालेगा।
न्यायाधीश ने कहा कि अदालत को बताया गया है कि ‘आज तक’ नार्को-विश्लेषण परीक्षण की कुछ रिकॉर्डिंग या प्रतिलेख प्रसारित करने पर विचार कर रहा है और अभियोजन पक्ष ने दावा किया है कि यह न केवल मामले के लिए हानिकारक होगा बल्कि आरोपी तथा पीड़िता के परिवार को भी प्रभावित करेगा।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ उन्होंने यह भी दावा किया कि मामले के जन भावनाओं से जुड़े होने के कारण कानून-व्यवस्था की स्थिति भी बिगड़ सकती है।’’
इससे पहले, आरोपों पर बहस के दौरान, अभियोजन पक्ष ने प्रैक्टो ऐप से एक ऑडियो क्लिप चलाया जिसके मुताबिक आरोपी और पीड़िता ने कथित तौर पर एक मनोचिकित्सक से परामर्श के लिए सत्र बुक किया था।
क्लिप में, वालकर को यह कहते हुए सुना जा सकता है, ‘‘जब भी मैं अपने गुस्से को लेकर चिल्लाना शुरू करती हूं, अगर वह कहीं आस-पास है, कहीं भी वसई (मुंबई के पास), मेरे आसपास कहीं भी ... शहर, वह मुझे ढूंढ लेगा, वह मुझे पकड़ लेगा, वह मुझे मारने की कोशिश करेगा, यही ... समस्या है।’’
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उसने केवल ‘‘प्रथम दृष्टया अपने विचार’’ व्यक्त किए हैं और दोनों पक्षों को अपनी दलीलें रखने का पूर्ण मौका दिया जाएगा।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ मेरा मानना है कि याचिका पर विस्तृत सुनवाई की जरूरत है.. केवल राज्य के पक्ष की नहीं बल्कि समाचार चैनल ‘आज तक’ के पक्ष को भी सुने जाने की जरूरत है। इसलिए राज्य को ‘आज तक’ चैनल (कंपनी के नाम से) को आवेदन की एक प्रति देने दें जिससे कि वह मामले पर जवाब दाखिल कर पाए।’’
उन्होंने मुख्य लोक अभियोजक विनोद शर्मा और विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद की दलीलों पर भी गौर किया कि रिकॉर्डिंग और प्रतिलेख पहले ही अदालत के रिकॉर्ड का हिस्सा बन चुके हैं और ऐसी परिस्थितियों में, कोई भी पक्षकार या व्यक्ति अदालत के रिकॉर्ड से संबंधित किसी भी चीज का इस्तेमाल बिना अदालत की अनुमति के नहीं कर सकता है।
अदालत ने कहा कि यह पहले से ही स्थापित कानून है कि आरोपपत्र सार्वजनिक दस्तावेज नहीं है। इसलिए इसे सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए उपलब्ध नहीं कराया जा सकता ।
न्यायाधीश ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने पहले ही व्यवस्था दी है कि मामले से संबंधित नहीं होने वाला व्यक्ति न्यायिक प्रक्रिया की प्रति तब तक प्राप्त नहीं कर सकता जब तक वह अदालत को अपने कारणों से संतुष्ट न कर दे।
उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए किसी व्यक्ति या संस्था ने अगर न्यायिक रिकॉर्ड से जुड़ी कोई सामग्री किसी तरीके से (कानूनी या गैर कानूनी) प्राप्त कर भी ली है तो उसे यह आजादी नहीं है या यह आजादी नहीं दी जा सकती कि वह उनका इस्तेमाल बिना अदालत की मंजूरी के करे। ’’
गौरतलब है कि इस मामले में दिल्ली पुलिस ने 24 जनवरी को 6,629 पन्नों का आरोप पत्र दाखिल किया था।
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