नयी दिल्ली, 19 जनवरी दिल्ली सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी के स्कूलों से कहा है कि वे किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी), बाल कल्याण समितियों (सीडब्ल्यूसी) और दिल्ली पुलिस की ओर से मांगे जाने पर प्राथमिकता के आधार पर सभी दस्तावेज़ तथा प्रमाण पत्र साझा करें।
दिल्ली बाल संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) ने कहा था कि वह उन मामलों में पुनर्वास और जांच पड़ताल में कुछ मुश्किलों का सामना कर रहा हैं जहां बच्चे अपराध के शिकार हैं और या कानून के साथ टकराव है। इसके बाद सरकार ने यह निर्देश जारी किए हैं।
शिक्षा निदेशालय ने स्कूल के प्रधानाचार्यों को लिखे पत्र में कहा है, “इस तरह की जांच में पहला (और शायद सबसे महत्वपूर्ण) कदम यह स्थापित करना है कि क्या संबंधित व्यक्ति एक बच्चा है। यह पुनर्वास के दृष्टिकोण के साथ-साथ विभिन्न वैधानिक निकायों के अधिकार क्षेत्र और कानूनों को लागू करने को भी निर्धारित करता है।”
उसमें कहा गया है, “सभी स्कूलों के प्रमुखों को निर्देश दिया जाता है कि सीडब्ल्यूसी, जेजेबी और दिल्ली पुलिस के अधिकारियों द्वारा मांगे जाने पर सभी दस्तावेजों और प्रमाणपत्रों को साझा करने में तात्कालिकता दिखाएं और प्राथमिकता दें।”
डीसीपीसीआर के अध्यक्ष अनुराग कुंडू ने इन मसलों का हवाला देते हुए पिछले साल नवंबर में शिक्षा निदेशालय को खत लिखा था।
कुंडू ने पत्र में कहा था, “किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 आयु निर्धारण के लिए एक स्पष्ट तंत्र निर्धारित करता है। ऐसे मामलों में जहां देखने से यह स्पष्ट नहीं होता है कि व्यक्ति एक बच्चा है, वहां, बाल कल्याण समितियां या किशोर न्याय बोर्ड स्कूल से जन्म प्रमाण पत्र या मैट्रिक या समकक्ष प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज़ी प्रमाण मांगते हैं।”
उन्होंने कहा था, “इसमें कई बार देरी की जाती है। अक्सर स्कूलों की ओर से दिए गए दस्तावेज अधूरे होते हैं। इसलिए, स्कूलों को इन कार्यों के महत्व के बारे में संवेदनशील बनाने की जरूरत है क्योंकि उम्र-निर्धारण जांच बच्चे के भविष्य का निर्धारण कर सकती है।”
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