देश की खबरें | कानून का उल्लंघन करने के बाद यौनकर्मी विशेष बर्ताव का दावा नहीं कर सकती: अदालत

नयी दिल्ली, आठ अगस्त दिल्ली उच्च न्यायालय ने नाबालिग लड़कियों की तस्करी की आरोपी एक यौनकर्मी को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया और कहा कि एक यौनकर्मी किसी नागरिक के लिए उपलब्ध सभी अधिकारों की हकदार है, लेकिन वह किसी विशेष बर्ताव का दावा नहीं कर सकती है। अदालत ने साथ ही यह भी कहा कि वह कानून के उल्लंघन के मामले में अन्य लोगों के समान ही परिणाम भुगतेगी।

न्यायमूर्ति आशा मेनन ने आरोपी की उच्चतम न्यायालय के उस फैसले पर भरोसा करने पर गौर किया, जिसमें कहा गया था कि एक यौनकर्मी कानून के तहत सभी संरक्षण की हकदार है। न्यायमूर्ति मेनन ने कहा कि वर्तमान मामला ऐसा नहीं है, जहां उसके अधिकारों के संरक्षण की आवश्यकता हो।

न्यायाधीश ने दो अगस्त के अपने आदेश में कहा, ‘‘आवेदक पर न केवल अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 के तहत, बल्कि भारतीय दंड संहिता की धारा 370 और 372 के तहत अपराधों का आरोप लगाया गया है, जो बेहद गंभीर अपराध हैं।’’

अदालत ने कहा, ‘‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक यौनकर्मी किसी नागरिक को उपलब्ध सभी अधिकारों की हकदार है, लेकिन साथ ही, अगर वह कानून का उल्लंघन करती है, तो उसे कानून के तहत समान परिणाम भुगतने होंगे और वह किसी विशेष बर्ताव का दावा नहीं कर सकती।’’

आरोपी को पिछले साल मार्च में एक वेश्यालय से गिरफ्तार किया गया था। उसने अदालत से इस आधार पर कम से कम एक सप्ताह की अंतरिम जमानत मांगी थी कि उसकी मां को तत्काल घुटने की सर्जरी की आवश्यकता है।

न्यायाधीश ने कहा कि मामला एक प्राथमिकी से संबंधित है, जो बचाव अभियान चलाए जाने के बाद दर्ज की गई थी और आरोपी के आचरण से अदालत का विश्वास उत्पन्न नहीं हुआ।

उन्होंने गौर किया कि पुलिस की स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, पीड़िता जो कि छुड़ायी गई लड़कियों में से एक है - ने आरोपी की पहचान उस व्यक्ति के रूप में की, जिसने उसे वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर किया और उसे वेश्यालय नहीं छोड़ने दिया। अदालत ने कहा कि आरोपी को अंतरिम जमानत देने के लिए कोई आधार नहीं बनता।

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