नयी दिल्ली, 21 मई आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) लाने वाली कंपनियों के लिए बाजार नियामक सेबी ने कहा है कि बिक्री पेशकश (ओएफएस) के आकार में किसी भी बदलाव के लिए नए सिरे से फाइलिंग की जरूरत सिर्फ रुपये में निर्गम के आकार या शेयरों की संख्या पर ही आधारित होगी।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने एक अधिसूचना में कारोबारी सुगमता बढ़ाने के लिए यह कदम उठाया है।
अधिसूचना के मुताबिक, निर्गम के बाद इक्विटी शेयर पूंजी का पांच प्रतिशत से अधिक हिस्सा रखने वाली प्रवर्तक समूह की इकाइयों और गैर-व्यक्तिगत शेयरधारकों को प्रवर्तक के रूप में चिह्नित किए बगैर ‘न्यूनतम प्रवर्तक अंशदान’ (एमपीसी) में आई कमी की भरपाई की अनुमति दी जा सकती है।
उद्यमियों द्वारा प्रवर्तित कंपनियां शेयर बाजारों पर अपने शेयरों को सूचीबद्ध करने से पहले वित्तपोषण के कई दौर से गुजरती हैं। ऐसी स्थितियों में, प्रवर्तकों की इक्विटी हिस्सेदारी पेशकश के बाद न्यूनतम प्रवर्तक अंशदान यानी 20 प्रतिशत इक्विटी शेयर पूंजी से कम हो सकती है।
हालांकि, पूंजी और खुलासा प्रावधान (आईसीडीआर) का मौजूदा नियम कुछ श्रेणियों के निवेशकों को इस कमी की दिशा में अंशदान की अनुमति देता है लेकिन अब इस अधिसूचना के जरिये इसमें लचीलापन लाने की कोशिश की गई है।
इसके अलावा, आईपीओ की मंजूरी के लिए सेबी के समक्ष दस्तावेजों का मसौदा (डीआरएचपी) दाखिल करने से पहले के एक साल में रखे गए अनिवार्य रूप से परिवर्तनीय प्रतिभूतियों के रूपांतरण से हासिल इक्विटी शेयरों को भी एमपीसी जरूरतें पूरी करने के लिए विचार किया जा सकता है।
सेबी ने 17 मई को जारी इस अधिसूचना में बैंक हड़ताल जैसी अप्रत्याशित घटनाओं के कारण बोली बंद करने की तारीख को न्यूनतम तीन दिन की वर्तमान आवश्यकता के बजाय न्यूनतम एक दिन बढ़ाने का प्रावधान किया है।
इन प्रावधानों को प्रभावी बनाने के लिए सेबी ने आईसीडीआर नियमों में संशोधन किया है।
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