वैज्ञानिक कोरोना वायरस के प्रसार का आकलन करने के लिए अपशिष्ट जल की जांच की ओर मुड़े
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नयी दिल्ली, एक मई देश में अधिकतर लोगों की कोविड-19 को लेकर परीक्षण नहीं होने की संभावना के बीच वैज्ञानिक पोलियो से जुड़े देश के निगरानी कार्यक्रम से सुराग ले रहे हैं और यह जानने के लिए सीवेज की ओर मुड़ रहे हैं कि कैसे कई लोग कोरोना वायरस से संक्रमित होते हैं।

आईआईटी, गांधीनगर के मनीष कुमार ने बताया कि अपशिष्ट जल महामारी विज्ञान समुदायों में कोरोना वायरस के प्रसार की निगरानी के लिए बेशकीमती औजार है। कुमार इस परियोजना पर एक अंतरराष्ट्रीय दल के साथ काम कर रहे हैं।

इस अपशिष्ट जल आधारित महामारी विज्ञान वैश्विक प्रयास से अमेरिका के नोर्टे डेम विश्वविद्यालय की अगुवाई में 50 से अधिक संस्थान एवं अनुसंधानकर्ता जुड़े हुए हैं।

यह समूह नमूने संबंधी कार्यों एवं विश्लेषण संबंधी नियमों एवं डेटा साझा करने में आपस में सहयोग कर रहा है ताकि इसमें प्राप्त नतीजे का वैश्विक स्तर पर तुलना की जा सके।

भारत में आंकड़े अपनी ही कहानी बताते हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अनुसार एक अरब तीस करोड़ की जनसंख्या में शुक्रवार तक 9,02,654 जांच किये गये। पिछले पांच दिनों में भारत में औसतन 49,800 परीक्षण रोजाना हो रहे हैं।

पिछले आठ दिनों में परीक्षणों की संख्या करीब दोगुना हो गयी है। भारत ने 23 मार्च से लेकर 22 अप्रैल तक महज तकरीबन पांच लाख परीक्षण किये थे लेकिन यह इस बीमारी के प्रसार को आंकने के लिए काफी नहीं है।

भू-विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर कुमार ने पीटीआई- से कहा, ‘‘वर्तमान जांच प्रक्रिया भारत में कोरोना वायरस संक्रमण की सटीक स्थिति बनाने के लिए काफी नहीं है। यदि लोगों में कोरोना वायरस के लक्षण आते हैं तो भी उसका पता लगाने में वाकई तीन से 15 दिन लग जायेंगे।’’

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