पटना: चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने अपने गृह राज्य में सक्रिय राजनीति में उतरने का संकेत देकर सोमवार को बिहार की सियासत में सरगर्मी बढ़ा दी. उन्होंने एक ट्वीट में कहा कि मुद्दों को बेहतर तरीके से समझने और ‘‘जन सुराज’’ के पथ पर बढ़ने के लिए लोकतंत्र के असली मालिकों (जनता) के पास जाने का समय आ गया है. किशोर, जनता दल (यूनाइटेड) में संक्षिप्त अवधि तक रहे थे और हाल में उनके कांग्रेस में शामिल होने की संभावना थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका.
किशोर के पांच मई को संवाददाता सम्मेलन करने की संभावना है, जिसमें वह इन अटकलों के बीच अपने अगले कदम के बारे में बताएंगे कि क्या वह एक राजनीतिक पार्टी गठित करेंगे या महज एक जनसंपर्क अभियान शुरू करेंगे, जैसा कि वह पहले भी कर चुके हैं. उन्होंने ट्वीट में कहा, “लोकतंत्र में एक सार्थक भागीदार बनने और जनहितैषी नीति को आकार देने के प्रयास में मैंने 10 साल तक उतार-चढ़ाव देखे! अब मैं उस अध्याय को पलट रहा हूं, मुद्दों को बेहतर तरीके से समझने और जन सुराज के पथ पर बढ़ने के लिए असली मालिकों-लोगों के पास जाने के वक्त आ गया है। शुरूआत बिहार से.
भारतीय जनता पार्टी से लेकर कांग्रेस और कई क्षेत्रीय दलों तक, विभिन्न विचारधाराओं के राजनीतिक दलों के साथ काम कर चुके चुनाव रणनीतिकार ने 2021 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को विजयी बनाने में एक अहम भूमिका निभाने के बाद पेशेवर चुनाव सलाहकार के तौर पर काम बंद करने की घोषणा की थी. सदा ही सक्रिय राजनीति में रूचि दिखाने वाले किशोर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जद(यू) में 2018 में शामिल हुए थे लेकिन संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएए) जैसे कई मुद्दों पर कुमार के साथ मतभेद होने के चलते उन्हें 2020 में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। किशोर ने उस वक्त भाजपा विरोधी कड़ा रुख अपनाया था और कुमार की आलोचना की थी.
जद(यू) में किशोर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर थे.निष्कासन के तुरंत बाद किशोर ने फरवरी 2020 में एक स्वतंत्र परियोजना “बात बिहार की” शुरू की थी हालांकि अवधारणा के स्तर पर यह बहुत अस्पष्ट रही. वह हाल में कांग्रेस में शामिल होने के काफी करीब तक पहुंच गये थे लेकिन उनके बीच अंतिम समझौता नहीं हो सका. भाजपा ने किशोर की ताजा घोषणा को लेकर उनका मजाक उड़ाते हुए उन्हें सत्ता का दलाल बताया, जो चुनावी राजनीति में खेल बिगाड़ने वाले से ज्यादा कुछ नहीं हैं.
भाजपा की बिहार इकाई के प्रवक्ता निखिल आनंद ने कहा,“ प्रशांत किशोर न तो सामाजिक वैज्ञानिक हैं और न ही राजनीतिक वैज्ञानिक। वह सत्ता के दलाल और बिचौलिया हैं। वह बिहार की राजनीति में वोट कटवा (खेल बिगाड़ने वाला) से ज्यादा कुछ नहीं हो सकते हैं. जद(यू) प्रवक्ता के. सी. त्यागी ने कहा कि हर कोई एक राजनीतिक संगठन बनाने के लिए स्वतंत्र है लेकिन नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के ‘सुशासन’ का एजेंडा राष्ट्रीय जनता दल के ‘कुशासन’ के बाद राज्य को विकास के पथ पर ले गया.
उन्होंने कहा, ‘‘कोई भी व्यक्ति राजनीतिक पार्टी बनाने को स्वतंत्र है और हम उन्हें अपनी शुभकामनाएं देते हैं। लेकिन फिलहाल कुमार का कोई विकल्प नहीं है. हालांकि, किशोर ने कहा है कि वह अब राजनीतिक सलाहकार के तौर पर काम नहीं करेंगे, लेकिन उनका संगठन आई-पैक यह कार्य करना जारी रखेगा. कुमार के साथ उनके संबंधों में जमी बर्फ भी पिघलती हुई प्रतीत होती है क्योंकि उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी की उनकी हालिया यात्रा के दौरान उनसे मुलाकात की थी.
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