नयी दिल्ली, 26 नवंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने श्रद्धा वालकर हत्याकांड की जांच का जिम्मा दिल्ली पुलिस से लेकर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को स्थानांतरित करने संबंधी एक जनहित याचिका को ‘‘तुच्छ’’ और ‘‘प्रचार हासिल करने का प्रयास’’ करार देते हुए खारिज कर दिया है। न्यायालय ने याचिकाकर्ता पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि वह इस तथ्य का न्यायिक संज्ञान ले सकता है कि इस मामले ने मीडिया का अत्यधिक ध्यान आकृष्ट किया है तथा तत्काल याचिका कुछ और नहीं, बल्कि एक वकील द्वारा "मीडिया का ध्यान आकृष्ट करने" की कोशिश थी।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अधिवक्ता ने यह कहते हुए ऐसे आरोप लगाए हैं कि दिल्ली पुलिस द्वारा मौजूदा मामले में फोरेंसिक साक्ष्य संरक्षित नहीं नहीं किये गये हैं और महरौली पुलिस स्टेशन द्वारा बरामद की गयी वस्तुओं तक आम जनता और मीडियाकर्मियों की पहुंच है।
पीठ ने कहा, "इस तरह की याचिकाएं केवल पुलिस के मनोबल को प्रभावित करती हैं और इसे प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए। निराधार आरोप आपराधिक न्याय प्रणाली में आम जनता के विश्वास को धूमिल करने वाले होते हैं। दिल्ली पुलिस एक पेशेवर इकाई है और उनका मनोबल बढ़ाने के लिए ऐसी याचिकाओं की कड़ी निंदा की जानी चाहिए।"
अदालत ने कहा कि उसका यह सुविचारित मत है कि याचिका केवल प्रचार हासिल करने के लिए दायर की गई है और इसके समर्थन में कोई तथ्य नहीं है।
अदालत ने कहा कि याचिका में जांच की प्रकृति और गुणवत्ता में कमियों को प्रदर्शित करने के लिए कुछ भी नहीं है।
पीठ ने 22 नवंबर को पारित अपने आदेश में कहा है, "सिर्फ यह कहकर कि जांच दोषपूर्ण है और हत्या के केवल 44 प्रतिशत मामलों में दोषसिद्धि होती है, इसका मतलब यह नहीं है कि हर मामले को सीबीआई को स्थानांतरित कर दिया जाना चाहिए।"
आदेश की प्रति शनिवार को वेबसाइट पर अपलोड की गयी।
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