नयी दिल्ली, 22 मार्च : राज्यसभा में मंगलवार को कांग्रेस ने दावा किया कि जम्मू कश्मीर में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाये बिना और लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गयी सरकार के बिना राज्य की तस्वीर नहीं बदली जा सकती है. उच्च सदन में कश्मीर के बजट और उससे जुड़ी अनुदान की अनुपूरक मांगों पर चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस के विवेक तन्खा ने कहा कि जम्मू कश्मीर में पिछले छह सालों से या तो राज्यपाल शासन चल रहा है या राष्ट्रपति शासन. उन्होंने कहा कि राज्य में विधायिका होने के बावजूद वहां के बजट पर संसद में चर्चा करनी पड़ रही है. तन्खा ने कहा, ‘‘जम्मू कश्मीर केवल अनुच्छेद 370 ही नहीं है, उससे बहुत बड़ा है.’’ उन्होंने कहा कि वहां करोड़ों लोग रहते हैं जिनके कुछ दृष्टिकोण हैं, कुछ आकांक्षाएं हैं और यदि उनकी इन आकांक्षाओं को जाने बिना हम (संसद) उनके बजट को बनाते हैं तो यह उनके साथ अन्याय होगा.
उन्होंने दावा किया कि जम्मू कश्मीर के उच्च शिक्षा बजट में करीब 30 प्रतिशत की कमी आयी है. उन्होंने कहा कि इसी के साथ राज्य के सांस्कृतिक क्षेत्र के लिए आवंटन, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी एवं बिजली उत्पादन संबंधी आवंटन में भी कमी आयी है.कांग्रेस सदस्य ने कहा कि बजट केवल गणित के आंकड़े नहीं होता है. इसका संबंध लोगों से होता है. उन्होंने एक संसदीय दल के श्रीनगर दौरे का जिक्र करते हुए कहा कि उन्हें डल झील का दृश्य देखकर रोना आ रहा था. उन्होंने प्रश्न किया कि जिस कश्मीर की सुंदरता डल झील से आंकी जाती थी, उस डल की झील की सुदंरता आज कहां गयी? उन्होंने कहा कि सरकार कश्मीर में विदेशी निवेश की बात करती है. उन्होंने सवाल किया, ‘‘जब कश्मीरी पंडितों को ही वापस जाने के लिए सुरक्षा नहीं मिल रही तो कौन विदेशी नागरिक आएगा?’’ उन्होंने याद दिलाया कि जब संसद में अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान हटाने संबंधी विधेयक को पारित किया जा रहा था तो उन्होंने गृह मंत्री से सवाल किया था कि क्या इसके हटने के बाद कश्मीरी पंडित लौट आएंगे? उन्होंने कहा कि इसके बावजूद कोई कश्मीरी पंडित वापस नहीं लौटा.
तन्खा ने कहा कि यदि कश्मीर का माहौल बदलता है तो बाहर रहने वाले कश्मीरी पंडित ही वहां सबसे पहले निवेश करेंगे. उन्होंने सवाल किया कि कश्मीर के बजट में कश्मीर के शिकारा वाले, वहां के घोड़ों वाले के लिए क्या है. उन्होंने सरकार को नसीहत दी कि जब तक राज्य की अर्थव्यवस्था को पटरी पर नहीं लाया जाता है, वहां कुछ भी नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि कश्मीर के सेब उद्योग, केसर उद्योग आदि का बुरा हाल है तथा पड़ोसी देशों का सेब भारत के बाजारों में बुरी तरह भर गया है. उन्होंने दावा कि जम्मू कश्मीर में बुरी तरह निराशा व्याप्त हो चुकी है. तन्खा ने कहा कि कश्मीर में आज विधानसभा ना होने के कारण लोगों की समस्या पर चर्चा नहीं हो रही. उन्होंने कहा, ‘‘वहां शासन तो है किंतु सरकार नहीं है. लोकतंत्र चुनी हुई सरकार से आता है और शासन राज्यपाल के जरिये चलता है.’’ यह भी पढ़ें : आत्मनिर्भर भारत का मतलब बंद अर्थव्यवस्था की ओर ले जाना नहीं: नीति आयोग उपाध्यक्ष
उन्होंने दावा कि जब कोविड महामारी में लॉकडाउन के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में जम्मू कश्मीर के छात्र फंस गये थे तो मध्य प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, पंजाब आदि विभिन्न राज्यों की सरकारों ने बसें भेजकर इन छात्रों को उनके गृह राज्य में पहुंचाने के प्रबंध किए. तन्खा ने कहा कि इसके बावजूद जम्मू कश्मीर के शासन ने ऐसे छात्रों को लाने के लिए कोई प्रबंध नहीं किया. कांग्रेस सदस्य ने कहा, ‘‘बस यहीं लोकतंत्र और शासन में फर्क समझ आता है.’’ उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद अच्छी बात है किंतु इसे मानवता के साथ होना चाहिए. उन्होंने कहा कि मानवता के बिना राष्ट्रवाद नाजीवाद हो जाता है. उन्होंने कहा कि वह इस मामले में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को दोष नहीं दे सकते हैं क्योंकि उन्होंने बजट उन सूचनाओं के आधार पर बनाया जो उन्हें स्थानीय अधिकारियों ने उपलब्ध कराई हैं. किंतु ऐसी सूचनाएं स्थानीय आकांक्षाओं के अनुरूप नहीं हैं.