लंबित मुकदमों को पक्षकारों की ओर से की गयी टिप्पणियों से छूट प्राप्त है : उच्च न्यायालय
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि कोई बयान सही है या मानहानि वाला, इसका पता मुकदमे के निस्तारण के बाद ही चलेगा और लंबित मुकदमों को पक्षकारों द्वारा की गयी टिप्पणियों से छूट प्राप्त है.
बेंगलुरु, 14 दिसंबर: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि कोई बयान सही है या मानहानि वाला, इसका पता मुकदमे के निस्तारण के बाद ही चलेगा और लंबित मुकदमों को पक्षकारों द्वारा की गयी टिप्पणियों से छूट प्राप्त है. अदालत ने ‘बिहार सरकार बनाम कृपालु शंकर’ मामले में उच्चतम न्यायालय की ओर से दिये गये आदेश के आधार पर यह फैसला दिया और एक मामले की सुनवाई के दौरान दिए गए बयान के मानहानिकारक होने का आरोप लगाने वाले एक आपराधिक मुकदमे का निस्तारण कर दिया.
कलव्वा नामक महिला ने यलप्पा और मनोज कुमार नामक व्यक्तियों के खिलाफ एक शिकायत दर्ज कराते हुए आरोप लगाया था कि उन्होंने अदालत की सुनवाई के दौरान उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां की थी. दोनों आरोपियों ने इस आपराधिक मुकदमे को रद्द करने का अनुरोध करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया था. कलव्वा और उनकी बहनों ने 2016 में उनके पिता हुचप्पा लक्कनवार द्वारा मनोज कुमार नामक व्यक्ति के पक्ष किए गए 23 एकड़ जमीन के बिक्री विलेख (सेल डीड) को रद्द करने का अनुरोध करते हुए एक मुकदमा दायर किया था.
महिला ने आरोप लगाया कि लिखित बयान और साक्ष्य हलफनामे में मनोज कुमार और यलप्पा ने अपमाजनक आरोप लगाए जो भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के तहत दंडनीय अपराध है. यलप्पा और मनोज कुमार ने बयान में दावा किया था कि हुचप्पा ने फकीरव्वा से शादी नहीं की थी और कलव्वा तथा उनकी बहनें हुचप्पा की बेटियां नहीं हैं, इसलिए उनका संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है.
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