नयी दिल्ली, 24 नवंबर सरकारी विभागों में प्रमुख पदों को भरने के लिए ‘लेटरल एंट्री’ के मुद्दे की एक संसदीय समिति द्वारा पड़ताल की जाएगी। इस साल की शुरुआत में इन पदों के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं किए जाने को लेकर राजनीतिक विवाद पैदा हो गया था।
लोकसभा सचिवालय द्वारा सार्वजनिक किए गए विवरण के अनुसार, कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय विभाग से संबंधित संसद की स्थायी समिति द्वारा 2024-25 में पड़ताल के लिए चुने गए विषयों में सिविल सेवाओं में ‘लेटरल एंट्री’ भी शामिल है।
इस वर्ष अगस्त में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने 45 पदों के लिए विज्ञापन दिया था, जिन्हें अनुबंध के आधार पर ‘लेटरल एंट्री’ के माध्यम से भरा जाना था। इनमें से 10 संयुक्त सचिव और 35 निदेशक एवं उप सचिव के पद थे।
इस विज्ञापन पर विपक्षी दलों के साथ-साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) और जनता दल (यूनाइटेड) जैसी सहयोगी पार्टियों ने भी विरोध जताया।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, विपक्ष के नेता राहुल गांधी, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती और समाजवादी पार्टी (सपा) के अखिलेश यादव सहित कई नेताओं ने अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के उम्मीदवारों के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं करने पर सरकार की नीति की आलोचना की थी।
इसके बाद सरकार ने यूपीएससी से अपना विज्ञापन रद्द करने को कहा। नौकरशाहों की भर्ती आमतौर पर सिविल सेवा परीक्षा प्रक्रिया के माध्यम से की जाती है, लेकिन ‘लेटरल एंट्री’ के जरिए सीमित अवधि के लिए सीधे भर्ती की जाती है। ‘लेटरल एंट्री’ के जरिये भर्ती में आमतौर पर किसी विशेष क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं। वर्तमान में इन नियुक्तियों पर कोई कोटा लागू नहीं है।
अब तक ‘लेटरल एंट्री’ के जरिए 63 नियुक्तियां की गई हैं, जिनमें से 35 नियुक्तियां निजी क्षेत्र से हुई हैं। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, इस समय 57 अधिकारी विभिन्न मंत्रालयों/विभागों में पदों पर हैं।
केंद्र सरकार में ‘लेटरल एंट्री’ 2018 से विशिष्ट कार्यों के लिए व्यक्तियों को नियुक्त करने के लिए की जाती है।
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