नयी दिल्ली, तीन अप्रैल राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को आह्वान किया कि सदन को वाद-विवाद, संवाद और चर्चा का मंच होना चाहिए, न कि व्यवधान का।
साथ ही उन्होंने उच्च सदन के सभी सदस्यों से अपील की कि वे सदन की गरिमा की रक्षा करने का संकल्प लें और इस अमृत काल में राष्ट्र की प्रगति के लिए सार्थक विचार-विमर्श में शामिल हों।
सभापति धनखड़ ने सदन के सभी सदस्यों को राज्य सभा दिवस की हार्दिक बधाई देते हुए कहा, ‘‘वर्ष 1952 में आज ही के दिन राज्यसभा का गठन हुआ था। हमारे संविधान में यथा परिभाषित 'राज्यों की परिषद' राज्य सभा हमारी राजनीति में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।’’
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की संघीय प्रणाली को ध्यान में रखते हुए, राज्य सभा लोगों के कल्याण के लिए उनसे जुड़े मुद्दों पर सार्थक चर्चा के लिए एक मंच की भूमिका निभाती है और उनका समाधान सुनिश्चित करती है।
धनखड़ ने कहा, ‘‘जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है "उच्च सदन" या "वरिष्ठजनों की सभा" इस सभा के विशिष्ट महत्वपूर्ण को दर्शाता है, यद्यपि ये शब्द आधिकारिक शब्दावली का हिस्सा नहीं हैं।’’
उन्होंने कहा कि देश अपेक्षा करता है कि सदस्य देश के नागरिकों के लिए अनुकरणीय उदात्त संसदीय परंपराओं को स्थापित करते हुए उनके लिए आदर्श प्रस्तुत करें। उन्होंने कहा कि सदन को वाद-विवाद, संवाद, विचार-विमर्श और चर्चा का मंच होना चाहिए, न कि व्यवधान और हंगामे का।’’
सभापति ने कहा, ‘‘इस महत्वपूर्ण अवसर पर, मैं उच्च सदन के सभी सदस्यों से अपील करता हूं कि वे राज्य सभा की गरिमा की रक्षा करने का संकल्प लें और इस अमृत काल में राष्ट्र की प्रगति के लिए सूचनाप्रद और सार्थक बहस एवं विचार-विमर्श में शामिल हों।’’
उल्लेखनीय है कि उच्च सदन में विभिन्न मुद्दों को लेकर लगातार गतिरोध कायम है जिससे सदन का कामकाज बाधित हो रहा है। सोमवार को भी हंगामे के कारण उच्च सदन की कार्यवाही बाधित हुई और एक बार के स्थगन के बाद दोपहर दो बजकर करीब पांच मिनट पर पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई।
अविनाश ब्रजेन्द्र
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