जयपुर, 22 अगस्त उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को कहा कि संसद और विधानमंडल संवाद, बहस और विमर्श के लिए होते हैं, न कि उपद्रव के लिए।
धनखड़ ने कहा कि संविधान सभा के समक्ष अपेक्षाकृत अधिक जटिल मुद्दे होने के बावजूद वहां कोई व्यवधान नहीं हुआ था, जबकि आज जो स्थिति है, वह ‘चिंता और चिंतन’ का विषय है।
उन्होंने यह भी कहा कि देश में हर किसी को कानून के दायरे में रहना चाहिए, भले ही वह कितना भी बड़ा व्यक्ति क्यों न हो या कितने भी ऊंचे पद पर क्यों न हो।
उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि भारत की न्यायिक प्रणाली बहुत मजबूत है और हाल ही में कई महत्वपूर्ण एवं निष्पक्ष निर्णय आये हैं, अलबत्ता, ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता कि देश के संस्थानों के प्रति विश्वास डगमगाये।
धनखड़ राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के सैनिक स्कूल में एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने छात्रों को अनुशासन में रहने, असफलता से न घबराने और राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने कहा, ‘‘राज्यसभा के सभापति के नाते मैं अपनी पीड़ा व्यक्त करता हूं। हमें संविधान देने वाली संविधान सभा ने लगभग तीन वर्ष तक कई बैठकें कीं। संविधान सभा के सामने जो मुद्दे थे, वे मौजूदा मुद्दों की तुलना में कहीं जटिल थे, लेकिन संविधान सभा में उन सबका निराकरण बातचीत से किया गया।’’
उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘संविधान सभा में एक भी दिन, एक भी पल कोई व्यवधान नहीं हुआ, उपद्रव करने की बात तो दूर है। उस परिप्रेक्ष्य में आज की हालत ‘चिंता और चिंतन’ का विषय है...आप सबके लिए मंथन का विषय है।’’
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में संसद और विधानमंडल संवाद, बहस और विमर्श के लिए होते हैं न कि उपद्रव के लिए।
देश की न्यायिक प्रणाली को मजबूत बताते हुए धनखड़ ने कहा कि किसी को भी सड़कों पर उतरकर न्याय मांगने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘कानून द्वारा निर्धारित न्याय का लाभ उठाए बिना न्याय पाने के लिए सड़कों पर उतरने की प्रवृत्ति अराजकता को जन्म देगी। हमारी न्याय व्यवस्था बहुत मजबूत है। हाल के दिनों में निष्पक्षता से महत्वपूर्ण निर्णय दिए गए है। ऐसा कोई कारण नहीं है कि हमारा विश्वास हमारी संस्थाओं में डिगे।’’
उन्होंने कहा कि कुछ चीजें हैं, जिनमें बदलाव की जरूरत है, लेकिन बदलाव के लिए एक मंच है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज भारत उदीयमान है और इस दशक के अंत तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
उन्होंने छात्रों से यह भी कहा कि वे हर चीज में राष्ट्रहित को सर्वापरि रखें। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को असफलता से घबराना नहीं चाहिए और अनुशासित रहना चाहिए।
चित्तौड़गढ़ के सैनिक स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने वाले धनखड़ ने अपने स्कूल के दिनों को याद करते हुए कहा कि सैनिक स्कूल में रहना उनका पुनर्जन्म था और उन्होंने जीवन में जो कुछ भी हासिल किया, वह इस स्कूल और यहां के शिक्षकों के कारण संभव हो सका।
धनखड़ ने सन् 1962 से 1967 तक अपनी शिक्षा सैनिक स्कूल, चित्तौड़गढ़ से प्राप्त की थी। हेलीकॉप्टर से चित्तौड़गढ़ पहुंचने के बाद धनखड़ शास्त्रीनगर में अपने स्कूल टीचर हरपाल सिंह राठी के घर पहुंचे। राठी उन्हें सैनिक स्कूल में रसायनशास्त्र पढ़ाते थे। धनखड़ ने अपने गुरु के चरण छूकर आशीर्वाद लिया।
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