टोरंटो, 6 जुलाई : एक वर्ष की अवधि के अंदर ही कई नए एमआरएनए और वायरल रोगवाहक टीकों के विकास ने टीकों को लेकर हिचकिचाहट को समझने के तरीके को बदल दिया है. स्वास्थ्य मानविकी में लैंगिक एवं सामाजिक न्याय अनुसंधानकर्ता के तौर पर मैंने 2020 की बसंत ऋतु में टीकों को लेकर हिचकिचाहट का विश्लेषण शुरू किया. मेरे सहायक और मैंने सोशल मीडिया और ऑनलाइन मंचों पर होने वाली बहसों का विश्लेषण किया. हमने पाया कि कोविड-19 (COVID-19) टीका हिचकिचाहट अप्रत्याशित व अस्थिर है क्योंकि टीका परिदृश्य को लेकर नए आंकड़े लगभग साप्ताहिक आधार पर सामने आ रहे हैं. हाल तक नए कोरोना वायरस को बच्चों के लिये खतरे के तौर पर नहीं देखा जा रहा था, ऐसे में टीकों को लेकर विश्वास जगाने का काम मुख्य रूप से वयस्क आबादी को ध्यान में रखकर तैयार किया जा रहा था.
ऐसे वक्त में जब हम 12 साल और उससे बड़े बच्चों के लिये क्लिनिकल ट्रायल के नतीजों का इंतजार कर रहे हैं, माता-पिता की हिचकिचाहट टीकाकरण कार्यक्रम के क्षेत्र में अगली चुनौती के तौर पर उभर रही है. खसरा, गलसुआ और रुबेला (एमएमआर) के टीकों को लेकर विवाद तबसे चल रहा है जब एक निराधार और अपुष्ट रिपोर्ट में इसे पहली बार ऑटिज्म नामक बीमारी से जोड़ा गया था. इस लिहाज से कोविड-19 को लेकर सामने आ रही बातों पर विचार करना जरूरी है. कम से कम 1970 के दशक से चिंतित माताएं बच्चों के टीकाकरण को लेकर प्रतिरोध का चेहरा रही हैं क्योंकि प्राथमिक देखभालकर्ता के तौर पर अपने बच्चों के लिये वे चिकित्सा निर्णय करने की आदी रही हैं.
पुरुष प्रतिभागियों के संदेह करने की बढ़ती संख्या जहां बढ़ी है वहीं अमेरिका में किए गए विश्लेषण से संकेत मिलते हैं कि माताएं (विशेषकर युवा माताएं) कोविड-19 टीके के संबंध में पिता के मुकाबले ज्यादा चिंता व्यक्त करती हैं. शुरुआती संकेतों से सुझाव मिलता है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं ज्यादा हिचकिचाहट दिखाती हैं. अमेरिका और कनाडा में महिलाओं के टीका लगवाने की दर वास्तव में ज्यादा है. महिलाओं में ज्यादा टीका हिचकिचाहट के परिणामस्वरूप उच्च टीका अस्वीकृति नहीं हुई. इससे सुझाव मिलता है कि संभवत: माताओं द्वारा टीकों को लेकर हिचकिचाहट अनिवार्य रूप से बच्चों के लिये टीकों को खारिज करने में नहीं बदलती है. उत्तर अमेरिका के अधिकतर वयस्कों को गलसुआ से लेकर पोलियो तक कई संचारी रोगों के खिलाफ बचपन में टीका लगाया गया था. वयस्कों के रूप में वे इस बात को लेकर चिंता व्यक्त कर सकते हैं कि टीकों की सामग्री, संकुचित टीकाकरण कार्यक्रम अथवा उनकी प्रतिकूल प्रतिक्रिया उनके बच्चों को प्रभावित कर सकती है-भले ही वे इनमें से कई टीके कई सालों पहले खुद प्राप्त कर चुके हों. यह भी पढ़ें : Drugs Case में गिरफ्तार हुए अभिनेता एजाज खान की जमानत याचिका हुई खारिज
कोविड-19 टीकों की बात करें तो वह समयावधि काफी कम होती है जब माता-पिता खुद टीका लगवाते हैं और जब वे अपने बच्चों को टीका लगवाने लेकर जाते हैं तथा जब बचपन में उन्हें खुद टीका लगा था. एमएमआर या पोलियो के टीकाकरण के लिहाज से माता-पिता और उनके बच्चों को यह टीका लगने में दशकों का अंतर हो सकता है लेकिन कोविड-19 टीकों की बात करें तो समय का यह अंतर कुछ हफ्तों या कुछ महीनों के अंदर पर यह टीका लगवा सकते हैं. माता-पिता अब टीके की पहली या दूसरी खुराक ले रहे हैं तो क्या ऐसे में अपने बच्चों के लिये टीकों को लेकर उनकी हिचकिचाहट में कमी आएगी? कोई यह उम्मीद कर सकता है कि अपने लिए दो खुराक लेने वाले माता-पिता अपने बच्चों के लिये भी यह चुनाव करेंगे. कोविड स्टेट प्रोजेक्ट- अमेरिका में 50 राज्यों के कोविड-19 का एक सर्वे- में यह पाया गया कि सर्वेक्षण में शामिल 26 प्रतिशत माता-पिता ने संकेत दिया कि वे खुद के लिये टीकों का विकल्प चुन सकते हैं लेकिन अपने बच्चों के लिये नहीं. इस रिपोर्ट का हालांकि अभी विशेषज्ञों द्वारा अध्ययन नहीं किया गया है.
इस नतीजे के कई मुमकिन कारण हैं. प्रतिभागी यह मान सकते हैं कि बच्चों को “कोविड नहीं होता” क्योंकि वयस्कों की तुलना में छोटे बच्चों में मामले कम आते हैं और कम गंभीर हैं. उन्होंने कहीं यह गलत जानकारी पढ़ी हो सकती है कि टीकों के कारण नपुंसकता होती है या वे बच्चों की तुलना में वयस्क प्रतिरक्षा प्रणाली को ज्यादा मजबूत मान सकते हैं. माता-पिता खुद पर संभावित प्रतिकूल प्रभावों के लिए तैयार हो सकते हैं लेकिन अपने बच्चों के लिये नहीं. वे तब भी हिचकिचाहट महसूस करते हैं अगर बच्चों को लगाया जाने वाला टीका उस टीके से अलग होता है जो उन्हें लगा हो.