नयी दिल्ली, 26 अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारक पराली जलाये जाने की रोकथाम के लिये पड़ोसी राज्यों द्वारा उठाए गए कदमों की निगरानी के वास्ते शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश मदन बी लोकुर की अध्यक्षता में एक सदस्यीय समिति नियुक्त करने का अपना 16 अक्टूबर का आदेश सोमवार को निलंबित कर दिया।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने केन्द्र के इस कथन पर विचार के बाद यह आदेश दिया कि वह पराली जलाने के पहलू सहित वायु प्रदूषण की समस्या से निबटने के लिये विस्तृत कानून बना रहा है।
पीठ ने कहा, ‘‘एकमात्र मुद्दा यह है कि लोगों का प्रदूषण की वजह से दम घुट रहा है और यह ऐसा है, जिस पर अवश्य अंकुश लगाया जाना चाहिए।’’
इससे पहले, सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि केन्द्र ने इस मामले में समग्र दृष्टिकोण अपनाया है और चार दिन के भीतर प्रदूषण पर अंकुश के लिये प्रस्तावित कानून का मसौदा न्यायालय में पेश कर दिया जायेगा।
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शीर्ष अदालत ने 16 अक्टूबर को पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में पराली जलाने की घटनाओं की निगरानी के लिये पूर्व न्यायाधीश मदन लोकुर की अध्यक्षता में एक सदस्यीय समिति नियुक्त की थी और उसकी मदद के लिये एनसीसी, एनएसएस, भारत स्काउट्स और गाइड को तैनात करने का आदेश दिया था। न्यायालय ने कहा था कि वह चाहता है कि दिल्ली-एनसीआर के निवासियों को सांस लेने के लिये प्रदूषण रहित स्वच्छ हवा उपलब्ध हो।
इस मामले की वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान मेहता ने पीठ से कहा, ‘‘हम इस विषय पर कानून लेकर आयेंगे। कृपया अपना पिछला आदेश फिलहाल निलंबित रखें। प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिये युद्ध स्तर पर काम करना होगा।’’
पराली जलाने की वजह से वायु प्रदूषण का मुद्दा उठाने वाले याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि इस बारे में कानून तो अगले साल ही आयेगा। इस पर मेहता ने कहा, ‘‘यह सरकार तेजी से काम करती है।’’
पीठ ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि सॉलिसीटर जनरल ने न्यायालय को सूचित किया है कि केन्द्र विस्तृत कानून बनाने पर विचार कर रहा है और अगर ऐसा है तो ‘‘हमें वह आदेश क्यों देना चाहिए, जो हमने दिया है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘हमें नहीं मालूम की समिति क्या करने जा रही है और हम यह भी नहीं जानते कि सरकार क्या करने जा रही है।’’
सिंह ने कहा कि केन्द्र 16 अक्टूबर की तरह ही इस समिति का विरोध कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस दौरान लोकुर समिति अपनी रिपोर्ट दाखिल करेगी।
पीठ ने अपना आदेश निलंबित रखते हुये इस मामले को 29 अक्टूबर को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध कर दिया, जब प्रदूषण से संबंधित दूसरे मामले सूचीबद्ध हैं।
पीठ ने मेहता के इस कथन को दर्ज किया कि केन्द्र का जनहित याचिका में उठाये गये प्रदूषण से संबंधित मुद्दों पर एक कानून बनाने का प्रस्ताव है।
पीठ ने कहा, ‘‘इस वक्तव्य को ध्यान में रखते हुये, 16 अक्टूबर को पारित आदेश निलंबित किया जा रहा है।’’
न्यायालय ने 16 अक्टूबर को दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की तेजी से बिगड़ रही स्थिति पर चिंता व्यक्त की थी और न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) मदन लोकुर की एक सदस्यीय समिति नियुक्त की थी, जिसे पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की रोकथाम के लिये उठाये गये कदमों की निगरानी करनी थी। न्यायालय ने उस दिन केन्द्र, उत्तर प्रदेश और हरियाणा की आपत्तियों को दरकिनार कर दिया था।
न्यायालय ने पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण और दिल्ली तथा संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों को लोकुर समिति का सहयोग देने का निर्देश दिया था ताकि वह स्वयं पराली जलाये जाने वाले खेतों में जाकर वस्तुस्थिति का जायजा ले सकें। इस समिति को शुरू में हर पखवाड़े अपनी रिपोर्ट न्यायालय को सौंपने का आदेश दिया गया था।
अनूप
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