नयी दिल्ली, 18 जनवरी : उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने कहा है कि विकीपीडिया जैसे ऑनलाइन स्रोत ‘क्राउड सोर्स’ (विभिन्न लोगों से प्राप्त जानकारी) और उपभोक्ताओं द्वारा तैयार संपादन मॉडल पर आधारित हैं जो पूरी तरह भरोसेमंद नहीं हैं और भ्रामक सूचनाएं फैला सकते हैं. न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि वह उन मंचों की उपयोगिता को स्वीकार करती है, जो दुनिया भर में ज्ञान तक मुफ्त पहुंच प्रदान करते हैं, लेकिन उसने कानूनी विवाद के समाधान में ऐसे स्रोतों के उपयोग को लेकर सतर्क किया.
पीठ ने मंगलवार को कहा, ‘‘हमारे यह बात कहने का कारण यह है कि ज्ञान का भंडार होने के बावजूद ये स्रोत ‘क्राउड सोर्स’ और उपभोक्ताओं द्वारा तैयार संपादन मॉडल पर आधारित हैं, जो अकादमिक पुष्टि के मामले में पूरी तरह से भरोसेमंद नहीं है और भ्रामक जानकारी फैला सकते है जैसा कि इस अदालत ने पहले भी कई बार देखा है.’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों और न्यायिक अधिकारियों को वकीलों को अधिक विश्वसनीय एवं प्रामाणिक स्रोतों पर भरोसा करने के लिए बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए. यह भी पढ़ें : Twitter ने व्यू काउंट टैब को दाईं ओर शिफ्ट किया, यूजर्स अब भी नाराज
पीठ ने केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधिनियम 1985 की प्रथम अनुसूची के तहत आयातित ‘ऑल इन वन इंटीग्रेटेड डेस्कटॉप कंप्यूटर’ के उचित वर्गीकरण संबंधी एक मामले को लेकर फैसले में ये टिप्पणियां कीं. शीर्ष अदालत ने कहा कि निर्णायक अधिकारियों, विशेष रूप से सीमा शुल्क आयुक्त (अपील) ने अपने निष्कर्षों को सही ठहराने के लिए विकिपीडिया जैसे ऑनलाइन स्रोतों का व्यापक रूप से उल्लेख किया. दिलचस्प बात यह है कि शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने 2010 में फैसला सुनाते हुए ‘सामान्य कानून विवाह’ शब्द की परि के लिए विकिपीडिया का हवाला दिया था.