नयी दिल्ली, 24 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि केंद्रीय कानून मंत्रालय ने निर्वाचन आयुक्त चुनने के लिए प्रधानमंत्री को जिन नौकरशाहों के नामों की सिफारिश की थी, उनमें से एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं था, जो चुनाव आयोग में निर्धारित छह साल का कार्यकाल पूरा कर सके।
न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने आश्चर्य जताया कि क्या सरकार सेवानिवृत्त नौकरशाहों की नियुक्ति करके मेधावी युवा उम्मीदवारों के लिए दरवाजे बंद नहीं कर रही है।
पीठ ने कहा, ‘‘एक कानून मौजूद है। हम आपसे उम्मीद करते हैं कि आप इस तरह से कार्य करेंगे कि आप वैधानिक आवश्यकताओं का पालन करेंगे। ऐसा क्यों है कि आपके पास सेवानिवृत्त नौकरशाहों का ही एक 'पूल' होगा, अन्य का क्यों नहीं? केवल चार नाम क्यों? उम्मीदवारों का एक बड़ा पूल क्यों नहीं?’’
न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा कि "क्या आप मेधावी युवा उम्मीदवारों को बाहर नहीं कर रहे हैं? ऐसा लगता है कि आप इस बात पर अड़े हुए हैं कि किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्त को आयोग में पूरे छह साल का कार्यकाल न मिले और यह कानून के खिलाफ है।"
निर्वाचन आयोग (चुनाव आयुक्त की सेवा और कारोबार का संव्यवहार शर्तों) अधिनियम, 1991 के तहत चुनाव आयुक्त का कार्यकाल छह साल या 65 वर्ष की आयु तक हो सकता है।
न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा कि मुद्दा यह है कि बड़ी संख्या में अधिकारियों के पूल से सरकार ने केवल उन लोगों को चुना है जो छह साल का कार्यकाल कभी पूरा नहीं करने वाले हैं। उन्होंने पूछा, ‘‘नाम प्रधानमंत्री को क्यों भेजे गए, मंत्रिपरिषद को क्यों नहीं?"
पीठ में न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार भी शामिल थे।
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