मुंबई, एक अगस्त बंबई उच्च न्यायालय ने औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदलने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली दो याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई करने के अनुरोध को सोमवार को अस्वीकार कर दिया।
अदालत ने कहा कि सरकार कुछ भी ‘‘बहुत तेजी’’ से नहीं करेगी।
न्यायमूर्ति प्रसन्न वराले और न्यायमूर्ति किशोर संत की एक खंडपीठ ने कहा कि अभी दोनों जनहित याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई की जरूरत नहीं है। पीठ ने मामले को 23 अगस्त को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
न्यायमूर्ति वराले ने कहा, ‘‘ किसी तरह की अत्यावश्यकता नहीं है। इस महीने कई अवकाश हैं। आप (याचिकाकर्ता) सरकार से काम करने की उम्मीद करते हैं? जबकि वे (सरकार) कामकाज वाले दिनों में भी काम नहीं करते।’’
अदालत ने कहा, ‘‘ कुछ भी बहुत तेजी से (सरकार द्वारा) नहीं किया जाएगा, जिसकी याचिकाकर्ता आशंका जता रहे हैं।’’
पिछले हफ्ते औरंगाबाद के निवासियों मोहम्मद मुश्ताक अहमद, अन्नासाहेब खंडारे और राजेश मोरे ने एक जनहित याचिका दायर कर औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजीनगर करने को चुनौती दी थी। वहीं, दूसरी जनहित याचिका सोमवार को उस्मानाबाद के 17 निवासियों ने, शहर का नाम धाराशिव रखने के राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ दायर की।
महाराष्ट्र की पूर्ववर्ती, उद्धव ठाकरे नीत महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार ने 29 जून को मंत्रिमंडल की बैठक में औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदलने का फैसला किया था। यह ठाकरे मंत्रिमंडल की आखिरी बैठक थी।
इसके बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली नयी सरकार ने 16 जुलाई को दोनों शहरों का नाम बदले जाने को लेकर एक नया प्रस्ताव पारित किया था।
दोनों ही याचिकाओं में सरकार के फैसले को ‘‘राजनीति से प्रेरित’’ बताते हुए आगह किया गया है कि नाम परिवर्तन करने से ‘‘धार्मिक और सांप्रदायिक नफरत’’ को बढ़ावा मिलेगा।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)