देश की खबरें | न्यायिक अधिकारियों की गरिमा और प्रतिष्ठा बनाये रखने की जरूरत: उच्चतम न्यायालय

नयी दिल्ली, 31 जनवरी उच्चतम न्यायालय ने 2006 के आपराधिक अवमानना के मामले में एक वकील को दोषी ठहराते हुए कहा है कि न्यायिक अधिकारियों की गरिमा और प्रतिष्ठा बनाये रखने और उन्हें प्रायोजित और निराधार आरोपों से बचाने की जरूरत है।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति पी. श्री नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने वकील के माफीनामे को खारिज करने का सही फैसला किया क्योंकि इसमें निष्कपटता का अभाव था।

पीठ ने कहा कि माफीनामा देर से दायर किया गया और यह केवल एक दिखावटी कदम था।

उनकी उम्र और कई बीमारियों से पीड़ित होने की बात पर गौर करते हुए उच्च न्यायालय द्वारा वकील को दी गई सजा को तीन महीने के कारावास से बदलकर ‘‘अदालत की कार्यवाही समाप्त होने तक’’ कर दिया गया।

वकील गुलशन बाजवा ने 17 अगस्त, 2006 को एक मुवक्किल के लिए एक मामले में पेश होने के दौरान उच्च न्यायालय की पीठ के समक्ष एक वकील को कथित तौर पर धमकी दी थी। जब उन्हें नोटिस जारी किया गया तो वह पेश नहीं हुए। इसके बाद बाजवा ने इसी मामले में अर्जी दाखिल कर उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर आरोप लगाये।

उच्चतम न्यायालय की पीठ ने मंगलवार को एक आदेश में कहा, ‘‘हम न्यायिक अधिकारियों की गरिमा और प्रतिष्ठा बनाए रखने और उन्हें प्रायोजित और निराधार आरोपों से बचाने की आवश्यकता पर उच्च न्यायालय के फैसले से पूरी तरह सहमत हैं।’’

शीर्ष अदालत दिल्ली उच्च न्यायालय के 2006 के उस फैसले के खिलाफ बाजवा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्हें अदालत की अवमानना ​​के लिए तीन महीने कैद की सजा सुनाई गई थी।

पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, अपीलकर्ता की उम्र और उनकी इस दलील को ध्यान में रखते हुए कि वह कुछ बीमारियों से पीड़ित है, हम उच्च न्यायालय द्वारा दी गई सजा को तीन महीने के कारावास से बदलकर अदालत की कार्यवाही समाप्त होने तक करते हैं।’’

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