कच्चे माल के आयात की वजह से जर्मनी और ब्रिटेन यूरोपीय संघ में सबसे ज्यादा जंगलों को तबाह कर रहे हैं. ये जंगल खनिजों और कोयले के लिए खुदाई के चक्कर में तबाह किये जा रहे हैं.वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर यानी डब्ल्यूडब्ल्यूएफ और वियना यूनिवर्सिटी ऑफ इकोनॉमिक्स एंड बिजनस एडमिनिस्ट्रेशन की रिसर्च के नतीजे में यह बात सामने आई है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के तोबियास किंड रीपर के नेतृत्व में टीम ने पता लगाया है कि पिछले 20 सालों में दुनिया भर में कोयला, धातु अयस्क और दूसरे औद्योगिक सामानों की खुदाई के लिए कितने जंगलों को उजाड़ा गया है.
जर्मनी और ब्रिटेन यूरोपीय संघ के स्तर पर सबसे अधिक खनन से जुड़े जंगलों की तबाही के लिए जिम्मेदार हैं. इन दोनों में प्रत्येक करीब 19 फीसदी के लिए जिम्मेदार है. जर्मनी के लिए उजाड़े गये जंगल का यह इलाका करीब 265 वर्ग किलोमीटर है. जर्मनी में आयातित कच्चे माल का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है. इसमें ऑटो इंडस्ट्री की हिस्सेदारी 17 फीसदी है जबकि मशीनरी और प्लांट कंसट्रक्शन की हिस्सेदारी 11 प्रतिशत है.
कच्चे माल की भूख
किंड रीपर का कहना है, "कच्चे माल के लिए हमारी भूख दूसरी जगहों पर जंगलों को उजाड़ रही है, पानी में जहर घोल रही है और इंसानों और जानवरों से उनकी आजीविका छीन रही है."
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कच्चे माल के लिए वर्षावनों को अकसर उजाड़ दिया जाता है. खनन के लिए उजाड़े जाने वाले 80 फीसदी से ज्यादा जंगल केवल 10 देशों में हैं. इनमें सबसे ज्यादा इंडोनेशिया (करीब 3,500 वर्ग किलोमीटर), ब्राजील (लगभग 1,700 वर्ग किलोमीटर) और रूस (करीब 1300 वर्ग किलोमीटर) के जंगल उजाड़े गये हैं.
जर्मनी और ब्रिटेन के बाद चीन (18 %) और अमेरिका (12 %) कच्चे माल का आयात करने के लिए जंगलों को उजड़वाते हैं. इसमें सबसे ज्यादा कोयले और सोने की खुदाई के लिए जंगल उजाड़े जाते हैं.
कितने जंगल उजड़े
ये आंकड़े साल 2000 से 2020 के बीच के हैं. इसका पता लगाने के लिए रिसर्चर टीम ने अंतरराष्ट्रीय कारोबार को देखा और उपग्रह से मिले चित्रों का विश्लेषण किया. स्टडी के लिए ना सिर्फ सीधे बल्कि 50 किलोमीटर के दायरे में अप्रत्यक्ष रूप से होने वाली तबाही को भी ध्यान में रखा गया. इसमें ट्रांसपोर्ट के रास्ते और खुदाई से जुड़े काम शामिल हैं.
रिसर्च के मुताबिक 2000 से 2020 के बीच कुल 755,900 वर्ग किलोमीटर जंगल का सफाया किया गया जो जर्मनी के कुल इलाके का करीब दोगुना है.
हालांकि अप्रत्यक्ष रूप से उजड़े जंगलों से जुड़े आंकड़ों के मामले में ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है. यह साफ साफ पता लगाना हमेशा आसान नहीं है कि खदानों के आसपास के इलाकों में पेड़ों के गिरने के पीछे सीधे खुदाई ही जिम्मेदार है. आखिर जंगलों को हो रहे इस नुकसान को कैसे कम किया जा सकता है? जियोइकोलॉजिस्ट गुड्रुन फ्रांकेन का कहना है कि पर्यावरण के लिहाज से अनुकूल खनन भी संभव है. फ्रांकेन का कहना है, "पर्यावरण के मानक निश्चित हों और उसी हिसाब से उन पर नजर भी रखी जाए."
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दुनिया भर के देशों में जहां खुदाई होती है उसका पर्यावरण पर पड़ने वाले असर का आकलन किया जाता है. हालांकि इसके लिए बहुत जरूरी है कि अधिकारियों और इन्हें लागू कराने वाली एजेंसियों के पास पर्याप्त जानकारी भी हो. फ्रांकेन के मुताबिक पर्यावरण के नुकसान को कम से कम रखने के लिए यह भी जरूरी है कि इलाकों को दोबारा से बसाया जाए और वहां के बसेरों को आबाद किया जाए.
एनआर/वीके (डीपीए)