एडिनबर्ग (ब्रिटेन), 3 जुलाई : जलवायु परिवर्तन का हमारी जिंदगी के हर हिस्से पर असर पड़ेगा, यहां तक कि जिन इमारतों में हम रहते और काम करते हैं, उन पर भी. अमेरिका (America) में ज्यादातर लोग अपना करीब 90 प्रतिशत वक्त चारदीवारी के भीतर रहकर ही बिताते हैं. जलवायु परिवर्तन मौलिक रूप से उन पर्यावरणीय परिस्थितियों को बदल रहा है जिनके अनुसार इन इमारतों का निर्माण किया गया था. वास्तुकार और इंजीनियर इमारतें और अन्य ढांचे जैसे कि पुलों को स्थानीय जलवायु के मानकों के अनुसार बनाते हैं. इन्हें उन सामान का इस्तेमाल कर और डिजाइन के उन मापदंडों का पालन करते हुए बनाया जाता है जो तापमान, बारिश, हिमपात और हवा चलने के साथ खड़े रह सकें. इसके साथ ही किसी भी भूवैज्ञानिक घटना जैसे कि भूकंप, मृदा अपरदन और भूजल स्तर का सामना कर सकें. जब इनमें से कोई भी मापदंड बढ़ता है तो इमारत के क्षतिग्रस्त होने का खतरा बढ़ जाएगा. अगर तेज हवाएं चलती है तो कुछ छतें टूट सकती है. अगर कई दिनों की भारी बारिश के बाद जलस्तर बढ़ता है तो भूतल जलमग्न हो सकता है. इन घटनाओं के बाद मरम्मत करायी जा सकती है और ऐसा फिर से होने के खतरे को कम करने के लिए अतिरिक्त कदम उठाए जा सकते हैं.
लेकिन जलवायु परिवर्तन से ऐसी स्थितियां पैदा होंगी जिससे ये मानदंड बहुत ज्यादा बढ़ सकते हैं. कुछ परिवर्तन जैसे कि वायु का औसत तापमान और आर्द्रता अधिक होना स्थायी हो जाएंगे. जलवायु परिवर्तन के कारण मकान अधिक गर्म होंगे, जिससे इनमें रह रहे निवासियों की जिंदगी को और अधिक खतरा होगा जो उत्तर अमेरिका में हाल ही में बढ़ी गर्मी के दौरान देखा गया. बाढ़ पहले से ज्यादा आएगी और ज्यादा बड़ा इलाका जलमग्न होगा. जलवायु परिवर्तन समिति ने हाल में एक रिपोर्ट में ब्रिटेन में इन दोनों खतरों से निपटने में नाकामी को उजागर किया है. कुछ हद तक ये असर स्थानीय रूप से होंगे और इन पर आसान उपायों से नियंत्रण लगाया जा सकता है. उदाहरण के लिए खिड़कियों पर शेड लगाकर, ऊष्मा रोधन के उपाय करके और मकान को पर्याप्त रूप से हवादार बनाकर उसे अत्यधिक गर्म होने से रोका जा सकता है.
दीमक और पिघलने वाले डामर
अधिक तेज हवा चलने और बारिश होने से मकान की बाहरी परत तेजी से खराब होगी और ज्यादा लीक होगी. तापमान बढ़ने से उन क्षेत्रों का विस्तार होगा जहां कुछ कीड़े रह सकते हैं. इसमें लकड़ी खाने वाले दीमक भी शामिल है जिससे मकान को काफी नुकसान पहुंच सकता है या मलेरिया फैलाने वाले मच्छर हो सकते हैं. तापमान के अत्यधिक गर्म होने से मकान बनाने में इस्तेमाल सामग्री फैलती है खासतौर से धातु. चीन के शेनझेन में एक गगनचुंबी इमारत के हिलने के लिए उच्च तापमान को आंशिक रूप से जिम्मेदार ठहराया गया जिससे उसे खाली कराना पड़ा. इस इमारत में इस्तेमाल स्टील का फ्रेम गर्मी में खिंच गया था. अत्यधिक तापमान बढ़ने से निर्माण संबंधी सामग्री पिघल भी सकती है. जब किसी इमारत के नीचे की जमीन में खिंचाव होता है तो उसमें दरार आ जाती है या उसके ढहने की भी आशंका होती है. मिट्टी की नींव पर बनी इमारतें खासतौर से संवेदनशील होती है क्योंकि पानी सोखने के बाद मिट्टी फूल जाती है, फिर सख्त होती और सूखने पर सिकुड़ जाती है. बारिश की प्रवृत्ति में बदलाव से यह समस्या बढ़ेगी. उदाहरण के लिए अगले 50 वर्षों में ब्रिटेन में 50 प्रतिशत से अधिक इमारत मृदा के घटाव से प्रभावित होंगी. यह भी पढ़ें : Rajasthan: राजस्थान सरकार ने 13 नगरीय निकायों में 62 सदस्य मनोनीत किए
कंक्रीट कैंसर
संभवत: सबसे बड़ी चिंता यह है कि जलवायु परिवर्तन का असर कंक्रीट पर कैसे होगा जो पृथ्वी पर सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली सामग्री है. गगनचुंबी इमारतों से लेकर पुलों और घरों में खिड़कियों के ऊपर बनने वाली शेड्स तक में कंक्रीट का इस्तेमाल होता है जो गीली कंक्रीट में स्टील की छड़ें रखने से बनती है. एक बार सूखने के बाद यह इमारत को मजबूती देती हैं.
लेकिन अत्यधिक गर्म मौसम में इस सामग्री की सहनशीलता कमजोर पड़ जाएगी. जब कंक्रीट के अंदर का स्टील गीला होता है तो उसमें जंग लगता है और वह फैलता है, कंक्रीट में दरार आ जाती है और इमारत कमजोर हो जाती है. इस प्रक्रिया को ‘कंक्रीट कैंसर’ भी कहा जाता है. तटीय इलाकों की इमारतें खासतौर से इस लिहाज से संवेदनशील होती हैं.
इमारतों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने का एकमात्र विकल्प है कि हम जल्द से जल्द इनमें रेट्रोफिटिंग शुरू कर दें और नयी इमारतें बनाए जो जलवायु परिवर्तन के लिहाज से मजबूत हो. रेट्रोफिटिंग एक नयी तकनीक है जिसमें मकान की ऊर्जा के उत्सर्जन को कम किया जाता है.