क्षय रोग की तुलना में कवक संक्रमण के कारण एड्स के अधिक मरीजों की मौत हुई
दुनियाभर में एड्स के कारण होने वाली मौतों की वार्षिक संख्या में कमी आई है. वर्ष 2004 में सर्वाधिक 19 लाख एड्स मरीजों की मौत हुई थी और 2020 में यह संख्या 6,90,000 रह गई. वर्ष 2020 में जिन एड्स मरीजों की मौत हुई, उनमें से 2,14,000 मरीजों की मौत क्षय रोग के कारण हुई, लेकिन इनमें से करीब 50 प्रतिशत मामलों की ही पुष्टि हुई है.
मैनचेस्टर, 13 फरवरी : दुनियाभर में एड्स के कारण होने वाली मौतों की वार्षिक संख्या में कमी आई है. वर्ष 2004 में सर्वाधिक 19 लाख एड्स मरीजों की मौत हुई थी और 2020 में यह संख्या 6,90,000 रह गई. वर्ष 2020 में जिन एड्स मरीजों की मौत हुई, उनमें से 2,14,000 मरीजों की मौत क्षय रोग के कारण हुई, लेकिन इनमें से करीब 50 प्रतिशत मामलों की ही पुष्टि हुई है. एड्स मरीजों और अन्य मरीजों के संदर्भ में क्षय रोग की तुलना में कवक संक्रमण (फंगल इन्फेक्शन) से अधिक लोगों की मौत हुई. एचआईवी संक्रमण से निपटने के लिए अधिक से अधिक लोगों का उपचार किया जा रहा है, जिसके कारण मौत की संख्या कम हो रही है, लेकिन यह गिरावट जितनी होनी चाहिए, उससे बहुत कम है. इसका कारण कवक संक्रमण से हुई मौत हैं.
कवक संक्रमण से होने वाली मौत से बचने के लिए एचआईवी संक्रमण का शुरुआती चरण में पता लगते ही उसका उपचार शुरू कर देना चाहिए, लेकिन यह दुर्भाग्य की बात है कि कई देशों में मरीजों में एचआईवी संक्रमण का देरी से पता लग पाना आम बात है. जो लोग हाल में एचआईवी से संक्रमित पाए गए हैं, उनमें से 30 प्रतिशत से 60 प्रतिशत पहले से ही एड्स से संक्रमित हो चुके थे और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो चुकी थी. एचआईवी संक्रमण का देर से पता लगने के कारण कई मरीजों को पहले ही कवक संक्रमण हो चुका होता है. तीन ऐसे कवक संक्रमण हैं, जिनसे संक्रमित मरीज में एचआईवी का जल्दी पता लगने से लाभ हो सकता है.
फंगल मेनिंजाइटिस
विशेष रूप से घातक एक कवक संक्रमण क्रिप्टोकोकल मेनिंजाइटिस है. यह कवक कबूतर की बीट में पाया जाता है. इससे सांस के जरिए संक्रमण फैलता है. आमतौर पर, व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता इसे नष्ट कर देती है, लेकिन एड्स के मरीजों में यह फेफड़ों और फिर रक्त के जरिए दिमाग में प्रवेश कर जाता है. इस कवक के कारण मात्र तीन से चार सप्ताह में एड्स के मरीज की मौत हो सकती है. फंगल मेनिंजाइटिस के कारण हर साल 1,20,000 से अधिक लोगों की मौत होती है और इनमें से 70 प्रतिशत मरीजों की मौत को टाला नहीं जा सकता.
फंगल निमोनिया
एक अन्य विनाशकारी फंगल संक्रमण न्यूमोसिस्टिस निमोनिया या पीसीपी है, जो कुछ हद तक कोविड निमोनिया की तरह है. इसमें खांसी, सांस लेने में तकलीफ और ऑक्सीजन की कमी की समस्या होती है. एचआईवी प्रकोप के शुरुआती दिनों में एड्स से संक्रमित पाए गए पांच में से करीब तीन मरीज पीसीपी से संक्रमित पाए गए. बहरहाल, अब सात में से एक मरीज पीसीपी से संक्रमित पाया जाता है. न्यूमोसिस्टिस मनुष्य के फेफड़ों में अपने स्वरूप में बदलाव करता है और यह खांसी के जरिए एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है. एचआईवी से संक्रमित शिशुओं के पीसीपी से संक्रमित होने की आशंका अधिक होती है. वर्ष 2020 में एचआईवी/एड्स के कारण करीब एक लाख शिशुओं की मौत हुई, जिनमें से अधिकतर की मौत का कारण पीसीपी था. इसके अलावा करीब एक लाख वयस्कों की मौत पीसीपी के कारण हुई.
क्षय रोग की तरह लगने वाला कवक
अमेरिका, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में चमगादड़ तथा पक्षियों की बीट में हिस्टोप्लाज्मा नामक कवक पाया जाता है. यदि रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है तो यह संक्रमण अस्थि मज्जा, फेफड़ों, आंतों और त्वचा में फैल जाता है, जिससे दो से तीन सप्ताह में हिस्टोप्लाज्मा के मरीज की मौत हो जाती है. हर साल क्षय रोग के मरीजों की संख्या कम हो रही है और क्षय रोग के जीवित मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है. इससे लगता है कि पहले जिन मरीजों के क्षय रोग से संक्रमित पाए जाने की बात कही गई थी, वे क्षय रोग नहीं, अपितु हिस्टोप्लाज्मा से संक्रमित थे. हिस्टोप्लाज्मा के मरीजों की संख्या साल दर साल बढ़ रही है. क्षय रोग और एचआईवी से एक साथ संक्रमित होने के कारण हुई मौत यह भी पढ़ें : Rajasthan Shocker: मोबाइल पर कार्टून दिखाने के बहाने 7 साल की बच्ची से दुष्कर्म, छोटे भाई ने मां को बताई आपबीती
क्षय रोग और एचआईवी का संक्रमण एक साथ होने से 2010 में 5,70,000 मरीजों की मौत हुई थी और 10 साल बाद यह संख्या गिरकर 2,14,000 रह गई. यह इस बात का प्रमाण है कि मामलों का शीघ्र पता चल रहा है, अपेक्षाकृत सटीक जांच हो रही हैं, एहतियातन उपचार पद्धति का इस्तेमाल किया जा रहा है और उपचार पूरा होने की दर में सुधार हुआ है. क्षय रोग की तुलना में तीन घातक कवक संक्रमणों के कारण होने वाली एचआईवी के मरीजों की मौत की संख्या कहीं अधिक है और ‘‘क्षय रोग से पीड़ित’’ समझे जाने वाले कुछ लोग संभवत: क्षय रोग से संक्रमित नहीं थे. इन तीनों संक्रमणों का शीघ्र पता लगने में देरी के कारण एड्स के मरीजों की मौत हो जाती है. यदि इनका शीघ्र पता लग जाए, तो इनमें से आधी मौत को टाला जा सकता है.