विदेश की खबरें | मैक्सिको में प्रवासियों की मौत ने अमेरिकी नीति पर ध्यान केंद्रित कराया
श्रीलंका के प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने

सैन फ्रांसिस्को, दो अप्रैल (द कन्वरसेशन) अमेरिकी सीमा के पास मैक्सिको के श्यूडाड जुआरेज में एक निरोध केंद्र में आग लगने से कम से कम 39 प्रवासियों की मौत की घटना के पीछे कई कारक हो सकते हैं।

घटना का तात्कालिक कारण यह प्रतीत होता है कि केंद्र में मौजूद कुछ हताश व्यक्तियों ने अपने निर्वासन के विरोध में वहां रखे गद्दों में आग लगा दी। इस घटना को लेकर सुरक्षा कर्मियों की भूमिका पर भी सवाल उठे हैं, जो एक वीडियो में घटनास्थल से जाते हुए नजर आ रहे हैं।

लेकिन आव्रजन नीति पर एक विशेषज्ञ के तौर पर, मेरा मानना है कि त्रासदी का एक और पहलू है, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है और वो है अमेरिका और मैक्सिको की सरकारों की दशकों पुरानी आव्रजन प्रवर्तन नीतियां। इन नीतियों की वजह से निरोध केंद्रों पर रखे जाने वाले लोगों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है।

आग लगने की घटना के बाद, प्रवासियों के मानवाधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत फेलिप गोंजालेज मोरालेस ने ट्विटर पर कहा था कि आव्रजन निरोध केंद्रों का अत्याधिक इस्तेमाल इस तरह की त्रासदियों का कारण है। सीमा के दोनों ओर इस तरह के केंद्रों का अत्याधिक इस्तेमाल करने में अमेरिका की बड़ी भूमिका है।

लंबे समय तक कैद रखा जाना और निर्वासन का डर

आज मैक्सिको के पास बहुत बड़ा निरोध तंत्र है। इसमें कई दर्जन लघु और दीर्घकालिक निरोध केंद्र शामिल हैं, जिनमें वर्ष 2021 में तीन लाख से ज्यादा लोग बंद थे।

लेकिन, अमेरिका का आव्रजन निरोध तंत्र दुनिया में सबसे बड़ा है, जिसमें सरकारी और निजी दोनों तरह के केंद्र शामिल हैं। इसके अलावा, जेलों समेत अन्य तरह के निरोध केंद्र भी बड़े पैमाने पर अमेरिका के पास मौजूद हैं।

मैक्सिको में कानून है कि निरोध केंद्र में प्रवासियों को थोड़े वक्त के लिए रखा जाएगा और उन्हें वकील तथा दुभाषीय तक पहुंच उपलब्ध कराई जाएगी। कानून कहता है कि केंद्रों की हालत ठीक होनी चाहिए और वहां रखे गए प्रवासियों को शिक्षा एवं स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच उपलब्ध होनी चाहिए।

लेकिन, हकीकत में प्रवासियों को निरोध केंद्रों में गंदगी का सामना करना पड़ता है। साथ ही वहां क्षमता से कहीं अधिक लोग रखे जाते हैं। यही नहीं, उन्हें शरण देने का मामला लंबे समय तक लटकाया रखा जाता है, जिससे उनमें निर्वासन को लेकर डर बना रहता है।

मैक्सिको के राष्ट्रपति एंड्रेस मैनुअल लोपेज ओब्रेडोर के मुताबिक, श्यूडाड जुआरेज में बंद ग्वाटेमाला, होंडुरास, वेनेजुएला, अल सल्वाडोर, कोलंबिया और इक्वाडोर के पुरुषों को जब पता चला कि उन्हें उनके देशों में भेज दिया जाएगा, तो केंद्र में आग लगने की शुरुआत हुई। निर्वासन अमेरिका में शरण पाने की उनकी उम्मीदों को खत्म कर देता।

आव्रजन को बड़ी सुरक्षा चुनौती के रूप में देखता है अमेरिका

अमेरिका के बजाय मैक्सिको क्यों निर्वासन की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहा था, इसका बहुत हद तक इस बात से लेना-देना है कि कैसे अमेरिका में होने वाले अवैध आव्रजन को नियंत्रित करने के लिए दोनों देशों ने सहयोग किया है। अमेरिका में 11 सितंबर 2001 को हुए आतंकवादी हमले के बाद, अमेरिकी अधिकारी आव्रजन को सुरक्षा खतरे के तौर पर देखने लगे। इससे न सिर्फ अमेरिका में आव्रजन से संबंधित घरेलू कानून प्रभावित हुए, बल्कि मैक्सिको के साथ उसके द्विपक्षीय रिश्तों पर भी असर पड़ा।

साल 2006 में मैक्सिको के तत्कालीन राष्ट्रपति फेलिप काल्डेरोन ने मादक पदार्थ के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए, “21वीं सदी की अमेरिका-मैक्सिकन सीमा” का निर्माण करने के लिए और आव्रजन प्रवर्तन मैक्सिको के क्षेत्र में स्थानांतरित करने के लिए अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के साथ साझा प्रयास शुरू किए।

अमेरिका ने मैक्सिको को इन प्रयासों के लिए व्यापक आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई, जो आज भी जारी है।

निर्वासन के माध्यम से रोकथाम की रणनीति काम नहीं कर रही

मैक्सिको द्वारा अवैध प्रवासियों को हिरासत में लेने और उन्हें स्वदेश निर्वासित करने की कोशिश ने अमेरिका में प्रवेश की चाह में मैक्सिको आने वाले प्रवासियों की संख्या घटाने में कुछ खास योगदान नहीं दिया है।

ऑस्टिन में टेक्सास विश्वविद्यालय के शोधार्थियों के एक अनुमान के मुताबिक, 2018 से 2021 के बीच नॉर्दन ट्राइएंगल क्षेत्र से मैक्सिको में सालाना औसतन 3,77,000 प्रवासियों ने प्रवेश किया। इनमें से ज्यादातर लोग अमेरिका जाने के इच्छुक थे। वे अपने-अपने देश में हिंसा, सूखा, प्राकृतिक आपदा, भ्रष्टाचार और गरीबी के दंश से बचकर निकले थे। ज्यादातर अवैध प्रवासी हैती और वेनेजुएला के अलावा अफ्रीकी देशों के थे।

इस बीच, अमेरिका-मैक्सिको सीमा पर हाल के वर्षों में सख्ती बढ़ाई गई है। डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद निवारक उपायों को और मजबूत बनाया गया है। अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी इस कवायद को जारी रखा है।

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