Mathura Temple Mosque Dispute: मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद मामलों को नत्थी करने के खिलाफ याचिका बाद में दाखिल की जा सकती है; उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद के 15 वादों को नत्थी करने संबंधी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका बाद में दाखिल की जा सकती है.

Mathura Temple Mosque Dispute: मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद मामलों को नत्थी करने के खिलाफ याचिका बाद में दाखिल की जा सकती है; उच्चतम न्यायालय
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नयी दिल्ली, 10 जनवरी : उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद के 15 वादों को नत्थी करने संबंधी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका बाद में दाखिल की जा सकती है. प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने प्रथम दृष्टया सभी वादों के समेकन संबंधी उच्च न्यायालय के फैसले के पक्ष में निर्णय लिया और कहा कि इससे दोनों पक्षों को फायदा होगा. पिछले वर्ष 11 जनवरी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मामलों को समेकित करने का निर्देश दिया था. शुक्रवार को सुनवाई की शुरुआत में उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा कि वह आराधना स्थलों पर 1991 के कानून से संबंधित मुद्दे पर विचार कर रही है और जानना चाहा कि उसे इस समय वादों के समेकन के मामले में हस्तक्षेप क्यों करना चाहिए.

मुख्य न्यायाधीश ने मस्जिद समिति का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील से कहा, ‘‘यदि जरूरत लगे तो आप बाद में भी यह याचिका ला सकते हैं.’’ इससे संबंधित एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में शीर्ष अदालत ने 12 दिसंबर को अगले आदेश तक देश की अदालतों को धार्मिक स्थलों, विशेषकर मस्जिदों और दरगाहों पर दावा करने संबंधी नए मुकदमों पर विचार करने और लंबित मामलों में कोई भी प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित करने पर रोक लगा दी थी. शुक्रवार को प्रबंधन ट्रस्ट शाही ईदगाह की ओर से उपस्थित एक वकील ने कहा कि वादों की प्रकृति समान नहीं हैं फिर भी उच्च न्यायालय ने उन्हें समेकित किया है. यह भी पढ़ें : Virendra Sachdeva on Arvind Kejriwal: सत्ता जाने के डर से अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं अरविंद केजरीवाल; वीरेंद्र सचदेवा

वकील ने कहा कि इससे जटिलताएं पैदा होंगी क्योंकि विभिन्न मुकदमों में सुनवाई एक साथ की जाएगी. पीठ ने कहा, ‘‘ इसमें कोई जटिलता नहीं है... यह आपके और उनके दोनों के हित में है क्योंकि इससे कई कार्यवाहियों से बचा जा सकेगा.’’ पीठ ने कहा, ‘‘हमें (मुकदमों के) समेकन के मुद्दे पर हस्तक्षेप क्यों करना चाहिए?’’ सीजेआई ने कहा, "अगर इसे समेकित कर दिया जाए तो क्या फर्क पड़ता है? वैसे, इस बारे में सोचें, हम इसे स्थगित कर रहे हैं, लेकिन मुझे लगता है कि समेकन से कोई फर्क नहीं पड़ता. 1 अप्रैल से शुरू होने वाले सप्ताह में (याचिका को) फिर से सूचीबद्ध करें."


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