नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के एक वकील के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है, जिन पर एक महिला सरकारी वकील को आत्महत्या के लिए उकसाने (धारा 306 IPC) का आरोप था. अदालत ने साफ कहा कि सिर्फ शादी से मना करना किसी अपराध की श्रेणी में नहीं आता, और यह आत्महत्या के लिए उकसाने का आधार नहीं हो सकता.
यह मामला नवंबर 2016 का है. अमृतसर में तैनात एक महिला सरकारी वकील ने जहर का सेवन कर जान दे दी. परिवार का आरोप था कि यदविंदर सिंह उर्फ सन्नी, जो स्वयं भी सरकारी वकील थे, उन्होंने शादी का वादा कर रिश्ता बनाया, फिर अचानक पीछे हट गए. परिवार के मुताबिक यह धोखा और मानसिक पीड़ा ही आत्महत्या की वजह बनी.
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FIR में कहा गया था कि 2015 में आरोपी ने महिला के घर आकर शादी की इच्छा जताई थी, लेकिन बाद में अपने परिवार के विरोध के चलते पीछे हट गया. लड़की की मां ने बयान में कहा कि इसी सदमे में उनकी बेटी ने यह खौफनाक कदम उठाया.
बाद में बदलता बयान, अदालत ने ठुकराया
शिकायत के दो दिन बाद महिला की मां ने एक और बयान दिया, जिसमें शारीरिक और मानसिक शोषण के आरोप जोड़े गए. उन्होंने कहा कि बेटी ने बताया था कि आरोपी ने शादी का झांसा देकर रिश्ते बनाए और जब उसने विरोध किया तो वह बोला, “जो करना है कर लो”
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे बदला हुआ और बढ़ा-चढ़ा बयान माना और कहा कि यह अभियोजन का आधार नहीं बन सकता.
उकसावे का कोई ठोस सबूत नहीं
जस्टिस जेबी पारदीवाला और केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा कि दोनों के बीच भावनात्मक जुड़ाव जरूर था, लेकिन ऐसा कोई प्रमाण नहीं कि आरोपी ने जानबूझकर या किसी सक्रिय कार्रवाई से पीड़िता को आत्महत्या की ओर धकेला हो.
कोर्ट ने कहा, “केवल शादी से इंकार कर देना, भले ही उससे दिल टूट जाए, उकसावे जैसा अपराध नहीं बनता.” अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि उकसावे के लिए अपराध की मंशा और प्रत्यक्ष प्रेरणा आवश्यक है. मात्र उदासीनता या कठोर जवाब देना अपराध नहीं माना जा सकता.
कोर्ट का फैसला
निर्णय देते समय बेंच ने दुख व्यक्त किया और कहा, “यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक युवा लड़की ने एक कमजोर पल में अपनी जिंदगी खत्म कर ली. लेकिन न्यायाधीश होने के नाते हमें केवल साक्ष्यों के आधार पर ही फैसला करना होता है.” कोर्ट ने कहा कि सिर्फ संदेह के आधार पर किसी को अपराधी नहीं ठहराया जा सकता, और इस मामले में ट्रायल चलाना न्याय का अपमान होगा. अदालत ने FIR और लंबित सभी कार्यवाहियों को रद्द करते हुए आरोपी को राहत दी.













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