देश की खबरें | महाराष्ट्र: रणनीतिक सुधार, आरएसएस समर्थित अभियान और महिला मतदाताओं ने महायुति की वापसी की पटकथा लिखी

मुंबई, 23 नवंबर महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)-नीत महायुति की भारी जीत लोकसभा चुनाव में हार के बाद रणनीतिक सुधार का संकेत देती है, जिसमें चुनाव अभियान में आरएसएस की सक्रिय भूमिका, लाडकी बहिन योजना, महिला मतदान में वृद्धि और हिंदुत्व के सूक्ष्म संदेश जैसे कारकों का भी अहम योगदान है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसस) की मदद के अलावा, महिला मतदाताओं और स्थानीय नेतृत्व पर ध्यान केंद्रित करना भी विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन का बड़ा कारण है।

मतों की शनिवार सुबह से शुरू गिनती जारी है और भाजपा ने समाचार लिखे जाने तक 99 सीट जीत ली हैं और 34 पर बढ़त बनाए हुए है।

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अध्यक्षता वाली शिवसेना (भाजपा की सहयोगी) ने 47 सीट हासिल की हैं और 10 पर बढ़त बनाए हुए है। एक अन्य सहयोगी, अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) ने 37 सीट जीती हैं और चार पर आगे चल रही है।

बड़े पैमाने पर हार का मतलब है कि महाराष्ट्र विधानसभा में कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं होगा, क्योंकि सत्तारूढ़ गठबंधन के बाहर किसी भी दल को जरूरी 29 सीट नहीं मिल सकीं।

चुनाव प्रचार के दौरान, भाजपा के शीर्ष नेताओं द्वारा ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक हैं तो सेफ हैं’ जैसे नारे लगाए गए (जिसका उद्देश्य स्पष्ट रूप से हिंदू एकता सुनिश्चित करना था) जिससे भाजपा के प्रदर्शन को बढ़ावा मिला।

सिर्फ पांच महीने पहले महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में भाजपा को केवल नौ सीट मिलीं और महायुति का प्रदर्शन केवल 17 सीट तक सिमट कर रह गया था, जबकि इस राज्य से 48 सांसद चुने जाते हैं। इसके विपरीत विपक्षी महा विकास आघाडी को 30 सीट मिली थीं।

भाजपा, शिवसेना और राकांपा के चुनाव प्रबंधकों ने बैठक कर विधानसभा चुनाव में स्थिति को अपने पक्ष में करने के लिए सुधारात्मक कदम उठाए।

लोगों की भावना स्पष्ट रूप से महायुति के पक्ष में तब बदलने लगी जब उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री अजित पवार द्वारा पेश किए गए राज्य के बजट में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की महिलाओं को प्रतिमाह 1,500 रुपये की वित्तीय सहायता की पेशकश करते हुए ‘मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहिन योजना’ पेश की गई।

यह योजना मप्र सरकार की ‘लाड़ली बहना योजना’ की तर्ज पर बनाई गई थी, जिसके बारे में माना जाता है कि इससे पिछले चुनाव में भाजपा को भारी अंतर से सत्ता बरकरार रखने में मदद मिली थी।

महायुति सरकार ने अगस्त के मध्य में औपचारिक रूप से लाडकी बहिन योजना शुरू की और बड़े पैमाने पर इसके प्रचार-प्रसार के लिए कार्यक्रम आयोजित किए।

योजना की बढ़ती लोकप्रियता ने एमवीए को सत्ता में आने पर महालक्ष्मी योजना की घोषणा करने के लिए मजबूर किया, जिसमें महिलाओं को प्रतिमाह 3,000 रुपये देने की पेशकश की गई।

महायुति ने लाडकी बहिन योजना के तहत दिये जाने वाले भत्ते को बढ़ाकर 2,100 रुपये करने के आश्वासन के साथ एमवीए के चुनावी वादे का प्रतिकार किया था।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि आम चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा के सूक्ष्म प्रबंधन और सुधार का विधानसभा चुनावों में भरपूर लाभ मिला है।

उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता देवेन्द्र फडणवीस ने एमवीए के पक्ष में मुस्लिम वोटों के एकीकरण को भांपते हुए ‘वोट जिहाद’ और ‘वोटों का धर्मयुद्ध’ विषय उठाया जिसने वफादार भाजपा मतदाताओं को एकजुट किया।

फडणवीस ने महायुति सरकार के खिलाफ ‘वोट जिहाद’ के लिए एक इस्लामी विद्वान की कथित अपील पर जोर दिया और ‘वोटों के धर्मयुद्ध’ का आह्वान किया।

शाम को एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने बताया कि तीनों दलों ने सौहार्दपूर्ण ढंग से सीट-बंटवारे को अंतिम रूप दिया।

अजित पवार ने कहा, ‘‘हमने लोकसभा की हार से सबक सीखा और सुधारात्मक कदम उठाए।’’

वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश अकोलकर ने कहा कि भाजपा का अभियान आरएसएस द्वारा संचालित था, जिसने चुनावी मुकाबले को ‘महाराष्ट्र में भाजपा के लिए करो या मरो की लड़ाई’ के रूप में लिया।

उन्होंने ‘पीटीआई-’ से कहा, ‘‘इस जीत का अधिक श्रेय आरएसएस कार्यकर्ताओं को जाता है। सोशल मीडिया सहित सभी स्तरों पर हिंदुत्व की पैठ के साथ, भाजपा और आरएसएस ने लोगों को यह विश्वास दिलाया कि हिंदुत्व ही मुख्य रक्षक है। ‘एक हैं तो सेफ हैं’ एजेंडा और मुसलमानों के प्रति नफरत ने काम किया।’’

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