नयी दिल्ली, 3 फरवरी : उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि हिंदू जन आक्रोश मोर्चा को मुंबई में पांच फरवरी को एक कार्यक्रम आयोजित करने की अधिकारियों से अनुमति मिलने की स्थिति में उस दौरान कोई नफरती भाषण नहीं दिया जाए. महाराष्ट्र सरकार की ओर से शीर्ष न्यायालय में पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ को बताया कि राज्य ने यह निर्णय किया है कि यदि कार्यक्रम के आयोजन की अनुमति दी जाती है, तो यह इस शर्त पर दी जाएगी कि कोई भी व्यक्ति नफरती भाषण नहीं देगा और कानून की अवज्ञा नहीं करेगा, या लोक व्यवस्था में खलल नहीं डालेगा.
पीठ ने मेहता के बयान दर्ज किये और राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने को कहा कि कार्यक्रम में कोई नफरती भाषण नहीं दिया जाए. न्यायालय ने कहा, ‘‘हम यह भी निर्देश देते हैं कि अनुमति दिये जाने की स्थिति में और सीआरपीसी की धारा 151 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल करने की स्थिति पैदा होने पर, यह प्रावधान लगाना संबद्ध पुलिस अधिकारियों का कर्तव्य होगा.’’ शीर्ष न्यायालय शाहीन अब्दुल्ला नामक याचिकाकर्ता की याचिका पर सुनवाई कर रहा था. याचिका में यह सुनिश्चित करने के लिए न्यायालय के हस्तक्षेप का अनुरोध किया गया है कि 29 जनवरी को हिंदू जन आक्रोश मोर्चा की सभा में हुई घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं हो. इस कार्यक्रम में एक समुदाय विशेष के खिलाफ कथित तौर पर नफरती भाषण दिये गये थे. यह भी पढ़ें : महाराष्ट्र पुलिस सुनिश्चित करे कि हिंदू संगठन के कार्यक्रम में कोई नफरती भाषण नहीं दे : न्यायालय
याचिकाकर्ता की ओर से न्यायालय में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि पुलिस को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 151 लगानी चाहिए, जो उन्हें एक संज्ञेय अपराध रोकने के लिए गिरफ्तारियां करने की शक्ति प्रदान करती है. सिब्बल ने पूरे कार्यक्रम की ‘वीडियोग्राफी’ कराये जाने और एक रिपोर्ट न्यायालय में सौंपे जाने की मांग की. पीठ ने अपने आदेश में पुलिस को कार्यक्रम की ‘वीडियोग्राफी’ करने और एक रिपोर्ट सौंपने को कहा. न्यायालय ने मेहता से कहा कि वह हिंदू जन आक्रोश मोर्चा के 29 जनवरी के कार्यक्रम के बारे में निर्देश प्राप्त करें. सुनवाई के दौरान, मेहता ने याचिका का विरोध किया और याचिकाकर्ता पर चुनिंदा तरीके से मुद्दा उठाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता केरल निवासी है, लेकिन उन्होंने महाराष्ट्र में एक प्रस्तावित कार्यक्रम को लेकर चिंता जताई है.
सॉलिसीटर जनरल ने कहा, ‘‘अब, लोग चुनिंदा तरीके से विषय चुन रहे हैं और इस न्यायालय में आकर इस कार्यक्रम को उत्तराखंड या मध्य प्रदेश या महाराष्ट्र में प्रतिबंधित करने की मांग कर रहे हैं. क्या इस न्यायालय को एक ऐसे प्राधिकार में तब्दील किया जा सकता है, जो कार्यक्रम के आयोजन की अनुमति प्रदान करता हो?’’ उन्होंने कहा कि कार्यक्रम रोकने का अनुरोध स्वीकार करना भाषणों की पहले ही कर दी गई ‘सेंसरशिप’ होगी. सिब्बल ने कहा कि 29 जनवरी के कार्यक्रम में सत्तारूढ़ दल के एक सांसद सहित भागीदारों ने आपत्तिजनक भाषण दिये और अगले चरण की अनुमति देने से पहले इन सभी पहलुओं पर विचार करने की जरूरत है.