मुंबई, 17 नवंबर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने बुधवार को बंबई उच्च न्यायालय में कहा कि महाराष्ट्र सरकार राज्य के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के विरुद्ध भ्रष्टाचार की जांच को “बेशर्मी” से बाधित करने का प्रयास कर रही है। सीबीआई ने कहा कि इस मामले में राज्य सरकार थोड़ी भी राहत के लायक नहीं हैं।
केंद्रीय एजेंसी ने अदालत से आग्रह किया कि महाराष्ट्र सरकार को कोई राहत न दी जाए। राज्य सरकार ने, देशमुख के खिलाफ जांच में सीबीआई की ओर से मुख्य सचिव सीताराम कुंटे और वर्तमान पुलिस महानिदेशक संजय पांडेय को जारी समन को निरस्त करने का अदालत से अनुरोध किया है।
सीबीआई की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने न्यायमूर्ति नितिन जामदार की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि राज्य सरकार देशमुख के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार और कदाचार के उन आरोपों की जांच करने में विफल रही जो मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त परमबीर सिंह ने लगाए थे।
लेखी ने कहा कि राज्य सरकार पर जांच शुरू करने का कानूनी दायित्व था लेकिन ऐसा करने की बजाय उसने देशमुख के विरुद्ध सीबीआई की प्राथमिकी के कुछ अंश हटाने तथा अन्य चीजों के लिए अदालत का रुख किया। लेखी ने कहा, “कानून सम्मत जांच नहीं हुई और इसलिए उच्च न्यायालय को पांच अप्रैल का आदेश देना पड़ा।”
उच्च न्यायालय ने पांच अप्रैल को एक आदेश में सीबीआई को निर्देश दिया था कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता देशमुख पर लगे आरोपों की प्रारंभिक जांच की जाए। धन शोधन के मामले में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तार किये जाने के बाद 71 वर्षीय नेता अभी न्यायिक हिरासत में जेल में हैं।
लेखी ने कहा, “अपनी अक्षमता और आचरण के चलते, महाराष्ट्र सरकार को इस अदालत से कोई राहत नहीं मिलनी चाहिए। महाराष्ट्र सरकार बेशर्मी से (इस जांच को) बाधित करने और जांच नहीं होने देने का प्रयास कर रही है।” सीबीआई के वकील ने अदालत का रुख करने के महाराष्ट्र सरकार के अधिकार पर भी सवाल खड़ा किया।
राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील डेरियस खम्बाटा ने कहा कि सीबीआई की जांच पूरे राज्य की पुलिस को प्रभावित कर रही है इसलिए सरकार के पास वह शक्ति है जिससे वह उन लोगों के बचाव में अदालत का रुख कर सकती है जो खुद पेश नहीं हो सकते।
खम्बाटा ने कहा, “महाराष्ट्र सरकार का जांच को बाधित करने या लंबित करने का कोई इरादा नहीं है। लेकिन सीबीआई पक्षपाती रवैया अपना रही है और देश के नागरिकों को मामले की मुक्त और पारदर्शी जांच की उम्मीद है।” सरकार की याचिका पर अदालत अब 22 नवंबर को सुनवाई करेगी।
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