देश की खबरें | भारत में लोगों के बीच खेल की समझ ना के बराबर: रीजीजू
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. खेल मंत्री किरेन रीजीजू ने खेल संस्कृति बनाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए शनिवार को कहा कि भारत में लोगों को और यहां तक कि संसद में उनके कुछ सहयोगियों को खेलों की समझ बेहद ही सीमित है।
नयी दिल्ली, 11 जुलाई खेल मंत्री किरेन रीजीजू ने खेल संस्कृति बनाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए शनिवार को कहा कि भारत में लोगों को और यहां तक कि संसद में उनके कुछ सहयोगियों को खेलों की समझ बेहद ही सीमित है।
रीजीजू इस बात को लेकर आश्चर्यचकित थे कि उनके सहयोगियों को लगा कि ज्योति कुमारी, कंबाला जॉकी श्रीनिवास गौड़ा और रामेश्वर गुर्जर जैसे सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोरने वाले ओलंपिक संभावित थे।
ज्योति कुमारी कोविड-19 महामारी के दौरान अपने बीमार पिता को साइकिल पर बैठाकर गुरुग्राम से बिहार तक ले गयी थी। कर्नाटक के गौड़ा के बारे में दावा किया गया था कि उन्होंने लगभग 11 सेकंड में 100 मीटर कर दौड़ पूरी की।
रीजीजू ने ईएलएमएस खेल संस्थान और अभिनव बिंद्रा संस्थान द्वारा आयोजित ‘हाई परफोरमेंस लीडरशिप’ कार्यक्रम के लॉन्च के मौके पर कहा , ‘‘खेलों के बारे में भारतीय समाज में ज्ञान बहुत कम है। मैं अपने संसद के सहयोगियों को नीचा नहीं दिखाना चाहता हूं, लेकिन उन्हें भी इसका ज्ञान नहीं है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ क्रिकेट के बारे में हर कोई जानता है, अंग्रेज लोगों ने हमारे दिमाग में डाल दिया है कि खेल में दूसरी टीम को हराना होता है। लेकिन इसके अलावा, कोई ज्ञान नहीं है, सब सिर्फ स्वर्ण पदक चाहते हैं।’’
मई के महीने में 15 साल की ज्योति कुमारी साइकिल पर बीमार पिता को बैठाकर आठ दिनों में गुरुग्राम से अपने पैतृक गांव तक का 1200 किलोमीटर का सफर तय की थी। भारतीय साइकिल महासंघ ने उसे ट्रायल का प्रस्ताव दिया जिसे ज्योति ने ठुकरा दिया।
ज्योति के बारे में रीजीजू ने कहा, ‘‘ यह लड़की कोविड-19 के कारण पैदा हुई कठिन परिस्थितियों में अपने पिता को गुड़गांव (गुरुग्राम) से बिहार तक साइकिल पर ले गई थी। यह दुखद बात थी लेकिन मेरे कुछ सहयोगियों ने ऐसी कल्पना की कि वह साइकिलिग में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतेगी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘देखिये ज्ञान की कमी लोगों को इस तरह से सोचने के लिए मजबूर करती है, बिना यह जाने कि साइकिल के प्रारूप क्या हैं और ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के लिए क्या मानक हैं, बस कुछ भी बोलने से नहीं होगा। ’’
इससे पहले गौड़ा और मध्य प्रदेश के गुर्जर भी मिट्टी के मैदानों में दौड़ के कारण सोशल मीडिया सनसनी बने जिसके बाद इन दोनों की तुलना ओलंपिक में कई स्वर्ण जीतने वाले फर्राटा धावक उसेन बोल्ट से की गयी। उन्हें ट्रायल के लिए बुलाया गया था।
रीजीजू ने कहा, ‘‘कर्नाटक में भी एक मामला था, एक बैलगाड़ी की प्रतियोगिता में कोई श्रीनिवास था। लोगों को यह न लगे कि हम स्थिति से अवगत नहीं हैं इसलिए भारतीय खेल प्राधिकरन (साइ) ने उसे ट्रायल के लिए बुलाया।’’
खेल मंत्री ने कहा, ‘‘मुझे बताया गया था कि वह विश्व स्तरीय धावक के लिए उपयुक्त नहीं है, लेकिन यह महत्वपूर्ण नहीं है। लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि हमें एक ऐसा व्यक्ति मिला है जो ओलंपिक चैंपियन उसेन बोल्ट से तेज है। हमें प्रतिभा की पहचान करनी है, लेकिन लोगों में समझ की कमी को देखिये।’’
उन्होंने देश में खेल संस्कृति की कमी पर भी जोर देते हुए कहा कि भारत ओलंपिक में अधिक स्वर्ण पदक जीतने के लिए यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि खेल को लेकर पूरा माहौल बदले।
उन्होंने कहा, ‘‘ इन सभी वर्षों में जिस चीज ने मुझे परेशान किया वह यह था कि हम भारत में एक खेल संस्कृति क्यों नहीं बना पा रहे हैं। अभिनव बिंद्रा को बीजिंग में स्वर्ण मिला। हमारी हॉकी टीम मास्को में स्वर्ण पदक जीती थी। इससे खुशी होती है लेकिन ऐसे अधिक अवसरों के लिए कोई सामूहिक प्रयास नहीं होता है।’’
रीजीजू ने कहा, ‘‘ भारत में निश्चित रूप से एक खेल परंपरा है लेकिन दुर्भाग्य से हमारे पास खेल संस्कृति नहीं है। बिंद्रा को स्वर्ण मिले इतने साल हो गए हैं। सौभाग्य से 1996 ओलंपिक से अब तक हम पदक तालिका में जगह बनाने में सफल रहे लेकिन भारत जैसे बड़े देश के लिए यह काफी नहीं है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ हमें यह सुनिश्चित करने के लिए देश में पूरे वातावरण (खेल से जुड़े) को बदलना होगा कि ऐसे क्षण अधिक आये। हम केवल एक या दो आइकॉन (खिलाड़ी) नहीं रख सकते, सिर्फ एक या दो पदक का जश्न नहीं मना सकते है।’’
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)