मुंबई, 14 जुलाई मुंबई की एक विशेष अदालत ने आठ-वर्षीया बेटी के यौन शोषण के दोषी पिता को उम्रकैद की सजा सुनाते हुए कहा है कि यह कृत्य ‘मनुष्यता पर भरोसे का खून करने के समान’ है।
यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम से जुड़े मामलों की सुनवाई करने वाली अदालत ने कहा कि दोषी (पिता) का अपराध ‘रक्षक के भक्षक’ बनने का स्पष्ट मामला है।
विशेष न्यायाधीश नाजिरा शेख ने बुधवार को आरोपी पिता को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) तथा पॉक्सो के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया। विस्तृत आदेश की प्रति शुक्रवार को उपलब्ध कराई गई।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि लगभग हर संस्कृति में पिता की भूमिका मुख्य रूप से एक संरक्षक, प्रदाता और अनुशासक की होती है।
विशेष न्यायाधीश ने कहा, “पिता-बेटी का रिश्ता एक लड़की की वयस्कता की यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक लड़की के जीवन में पिता पहला पुरुष होता है जिसे वह करीब से जानती है।’’
उन्होंने कहा कि पिता एक लड़की के जीवन में अन्य सभी पुरुषों के लिए मानक निर्धारित करता है और आरोपी का कृत्य ‘मानवता में भरोसे का खून करने के समान’ है।
अदालत का मानना था कि आरोपी का कृत्य "गंभीर और दुर्लभ" है, और इसलिए यह पॉक्सो अधिनियम के प्रावधान के तहत आजीवन कारावास की निवारक सजा का पुख्ता मामला है।
अभियोजन पक्ष के मुताबिक, पीड़िता की मां ने अक्टूबर 2020 में शिवाजी नगर पुलिस स्टेशन में आरोपी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।
अभियोजन के अनुसार, ‘‘घटना वाले दिन पीड़िता की मां बाहर गई थी, घर लौटने पर उसने बच्ची की चीख सुनी और देखा कि उसका पति बच्ची का यौन शोषण कर रहा था। उसने आरोपी को दूर धकेला और पीड़िता को बचाया।’’
अभियोजन पक्ष ने कहा, ‘‘पड़ोसी इकट्ठा हो गए और आरोपी की पिटाई शुरू कर दी। पड़ोसियों में से एक ने पुलिस को बुलाया। पुलिसकर्मी आए और आरोपी को पुलिस थाने ले गए, उसके बाद मां ने शिकायत दर्ज कराई।’’
अदालत ने पीड़िता, उसकी मां और मामले के जांच अधिकारियों की गवाही पर भरोसा किया तथा मेडिकल सबूतों पर विचार किया।
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