नयी दिल्ली, 14 सितंबर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि वह एक विस्तृत आदेश देगा, जिसके आधार पर कोविड-19 महामारी के दौरान जेलों में बंद कैदियों के खिलाफ अपराध के आरोप की प्रकृति और इनसे संबंधित कानून को ध्यान में रखते हुये उनकी रिहाई के बारे में राज्यों में उच्चाधिकार प्राप्त समितियां फैसला करेंगी।
कोरोना वायरस फैलने के बाद इसे महामारी घोषित किये जाने पर शीर्ष अदालत ने 23 मार्च को कैदियों के बीच सामाजिक दूरी बनाये रखने की आवश्यकता महसूस करते हुये राज्यों को उच्चाधिकार प्राप्त समितियां गठित करने का आदेश दिया था ताकि कैदियों की सजा की अवधि और अपराध की संगीनता और ऐसे ही दूसरे तथ्यों को ध्यान में रखते हुये उन्हें अंतरिम जमानत या आपात पैरोल पर रिहा किया जा सके।
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प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने सोमवार को गैर सरकारी संगठन नेशनल एलायंस फॉर पीपुल्स मूवमेन्ट्स की याचिका का संज्ञान लिया। इसमें कहा गया है कि महाराष्ट्र में उच्चाधिकार प्राप्त समिति के आदेशों के बावजूद अनेक कैदियों को रिहा नहीं किया गया है।
पीठ ने बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ दी गयी दलीलों पर भी विचार किया जिसमें उच्चाधिकार समिति द्वारा अपराधों का वर्गीकरण करने और कैदियों की रिहाई के लिये अतिरिक्त शतें लगाने को सही ठहराया गया था।
पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई करते हुये कहा, ‘‘अब हम यह टिप्पणी करेंगे कि उच्चाधिकार समिति स्थिति को ध्यान में रखते हुये रिहाई के आदेश दे सकती है।’’
पीठ ने कहा कि इस बारे में विस्तृत आदेश पारित किया जायेगा।
इस गैर सरकारी संगठन ने अपनी राष्ट्रीय संयोजक मेधा पाटकर के माध्यम से दायर याचिका में महाराष्ट्र की जेलों में बंद 17,642 विचाराधीन कैदियों को अंतरिम जमानत पर उन्हें रिहा करने पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया है।
इस याचिका में कहा गया है कि उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने 11 मई की बैठक में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक और महानिरीक्षक कारागार तथा सुधार गृह की सिफारिशों के मद्देनजर कैदियों का वर्गीकरण किया था और उसने 17,642 विचाराधीन कैदियों को रिहा करने का सुझाव दिया था।
इस संगठन का आरोप है कि विभिन्न जेलों में महामारी फैलने की वजह से कम से कम 10 कैदियों की कोविड-19 से मृत्यु हो चुकी है। संगठन ने कैदियों की अंतरिम रिहाई का अनुरोध किया है।
याचिका में उच्चाधिकार प्राप्त समिति के वर्गीकरण के आधार पर मामले की अंतिम सुनवाई लंबित होने के दौरान 11,000 दोषसिद्ध कैदियों की आपात पैरोल पर अस्थाई रिहाई के लिये पुन:विचार करने का अनुरोध किया गया है।
इस संगठन ने न्यायालय से अनुरोध किया है कि वह राज्य के प्राधिकारियों से रिपोर्ट मंगाये कि क्या महाराष्ट्र की जेलों में कैदी डब्लूएचओ द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप सामाजिक दूरी बनाये रखने में सफल हो पा रहे हैं या नहीं।
अनूप
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