नई दिल्ली, 2 अगस्त: तरन्नुम की कलाई पर काटने के निशान, उसके शरीर के कई ज़ख्म उसे वेश्यालय में बिताए उन वर्षों की याद दिलाते हैं जहां न जाने कितनी बार उसका यौन शोषण हुआ. वह याद करके बताती है, "नरक के तीन साल." चक्रवात के लिहाज से संवदेनशील इलाके सुंदरबन के एक मछुआरे की बेटी 13 साल की तरन्नुम को 2012 में एक स्थानीय दुकानदार तस्करी करके लाया था. उसने उसे अच्छे वेतन पर घरेलू सहायिका का काम दिलाने का लालच दिया था. दिल्ली लाने के बाद उसने उसे एक कोठे पर बेच दिया. तीन साल बाद पुलिस की मदद से एक स्थानीय एनजीओ ने उसे बचाया लेकिन घर लौटने के बाद भी खौफनाक यादों ने उसका पीछा नहीं छोड़ा और उसने कई बार अपनी कलाई काटकर आत्महत्या करने की कोशिश की.
तस्करी का शिकार हुई एक अन्य पीड़िता रीमा (बदला हुआ नाम) को अपने माता-पिता भी याद नहीं. उसे अपने पिता की धुंधली-सी तस्वीर याद है. बहुत कम उम्र में एक कोठे के मालिक ने उसकी तस्करी की और उसे वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेल दिया. देश के विभिन्न शहरों में कई सालों तक यौन शोषण का शिकार होने के बाद उसे 21 साल की उम्र में 2013 में पश्चिम बंगाल के सोनागाछी में एक कोठे से छुड़ाया गया. तरन्नुम और रीमा उन हजारों बच्चों और लड़कियों में से हैं जिनकी हर साल देश के अलग-अलग हिस्सों में तस्करी की जाती है. इस साल कोरोना वायरस संक्रमण के कारण सामाजिक कार्यकर्ताओं को फिक्र है कि आने वाले वक्त में मानव तस्करी के मामले बढ़ सकते हैं.
तस्करी रोधी शोधकर्ता और लैंगिक अधिकार कार्यकर्ता रूप सेन ने कहा कि इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि समाज के हाशिये पर रहने वाले लोगों के तस्करी की चपेट में आने का खतरा अधिक है. उन्होंने कहा, "इसके पीछे कई कारण हैं जैसे कर्ज का जाल, कारखानों, रेस्तरां और रिटेल दुकानों का बंद होना और रेड लाइट इलाकों में युवतियों और महिलाओं की मांग में संभावित वृद्धि." सेन ने कहा कि सरकार मानव तस्करी पर लगाम लगाने के लिए कमजोर परिवारों और समुदायों को नकद हस्तांतरण सहयोग, बच्चों और स्कूल जाने वाली किशोरियों को नकद हस्तांतरण सुविधा मुहैया करा सकती है.
उन्होंने सुझाव दिया कि मानव तस्करी रोधी ईकाइयां सबसे अधिक प्रभावित इलाकों में तस्करी पर खुफिया जानकारियां एकत्रित कर सकती हैं.'पार्टनर्स फॉर एंटी ट्रैफिकिंग' नाम के एनजीओ नेटवर्क के साथ काम करने वाले पश्चिम बंगाल के कार्यकर्ता शम्भू नंदा ने दावा किया कि पिछले दो महीनों में लड़कियों की गुमशुदगी और तस्करी की कई रिपोर्टें मिली हैं. उन्होंने कहा, "जब माता-पिता स्थानीय पुलिस थानों में शिकायत दर्ज कराते हैं तो अधिकारी खुद को नि:सहाय बताते हैं क्योंकि उनका पूरा श्रमबल कोविड-19 की रोकथाम में लगा है."
एनजीओ संजोग के सदस्य पोम्पी बनर्जी ने कहा, "महामारी, लॉकडाउन और हमारे देश के कई हिस्सों में प्राकृतिक आपदाओं (बाढ़ और चक्रवातों) ने समस्याओं को बढ़ा दिया है और उन्हें सामने ला दिया है जिसे कानून प्रवर्तन एजेंसियां तथा नेता नजरअंदाज नहीं कर सकते." एनजीओ हेल्प चलाने वाले आंध्र प्रदेश के तस्करी विरोधी कार्यकर्ता एन राममोहन ने दावा किया कि कई यौन कर्मियों को लॉकडाउन के दौरान अत्यधिक ब्याज पर कर्ज लेना पड़ा है. खासतौर से ऐसे लोग जो अपने परिवार के लिए कमाने वाले सदस्य हैं.
क्राई में पॉलिसी रिसर्च एंड एडवोकेसी निदेशक प्रीति महारा ने कहा कि सरकार और नागरिक समाज को बच्चों की तस्करी पर नजर रखने में मदद के लिए गांवों तथा झुग्गी-झोंपडियों में आ रहे या जा रहे परिवारों तथा बच्चों के रिकॉर्डों की निगरानी के लिए पंचायत जैसी स्थानीय स्व-शासित ईकाइयों को सक्रिय करने की जरूरत है. एनजीओ 'सेव द चिल्ड्रेन' के उप निदेशक प्रभात कुमार ने बताया कि जब भी कोई आपदा आती है तो संकट के कारण तस्करी के मामले बढ़ जाते हैं क्योंकि तब तस्करी करना आसान हो जाता है. उन्होंने आगाह किया कि आर्थिक संकट, उचित तंत्र के अभाव और प्रवासी संकट से आने वाले वक्त में मानव तस्करी के मामले बढ़ने का खतरा है.
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)