नयी दिल्ली, 10 फरवरी उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने शुक्रवार को बिहार के एक न्यायिक अधिकारी की उस याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया, जिसमें उन्होंने पटना उच्च न्यायालय द्वारा अपने निलंबन को चुनौती दी है।
बिहार में अररिया के निलंबित अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश शशिकांत राय ने अपनी याचिका में कहा है कि एक नाबालिग लड़की के यौन उत्पीड़न के मामले में त्वरित फैसला सुनाये जाने के कारण उन्हें निलंबित किया गया है।
सुनवाई की शुरुआत में न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति अमानुल्लाह की पीठ ने राय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह को बताया कि पीठ के एक न्यायाधीश पटना उच्च न्यायालय के प्रशासनिक निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा थे।
पटना उच्च न्यायालय से शीर्ष अदालत में हाल ही में पदोन्नत होने वाले न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा, ‘‘शायद मैं भी (पटना उच्च न्यायालय) उस समिति का एक हिस्सा था, जिसने निर्णय लिया था।’’
आदेश में प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ को प्रशासनिक क्षमता में कोई और पीठ गठित करने का आग्रह करते हुए कहा गया है, ‘‘मामले को उस पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करें, जिसमें हममें से एक, न्यायमूर्ति अमानुल्ला शामिल न हों।’’
एक संक्षिप्त सुनवाई के दौरान, सिंह ने कहा कि पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा राय के एक कनिष्ठ न्यायिक अधिकारी को अब अररिया का जिला न्यायाधीश (डीजे) बनाया गया है, क्योंकि मौजूदा डीजे इस साल 31 जनवरी को सेवानिवृत्त हुए हैं और इससे गंभीर अन्याय हुआ है।
पीठ ने कहा, ''अब हम इस मामले को नहीं सुन सकते।’’
राय ने अपनी याचिका में कहा था कि छह साल की बच्ची के साथ बलात्कार से जुड़े मामले में यौन अपराध से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत एक ही दिन में सुनवाई पूरी करने के बाद उन्हें ‘संस्थागत पक्षपात’ का सामना करना पड़ा है।
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