श्रीनगर, 14 जुलाई : जम्मू कश्मीर (Jammu and Kashmir) में आतंकवादियों से मुकाबला कर रहे पुलिसकर्मी उनके ‘सॉफ्ट टारगेट’ बन रहे हैं. पुलिसकर्मियों को भीड़-भाड़ वाले बाज़ार में खरीदारी करते या अपने बच्चों को स्कूल छोड़ते हुए देखा जा सकता है. उनकी ऐसी जरूरतों ने उन्हें आतंकवादियों का ‘सॉफ्ट टारगेट’ बना दिया है. सहायक उप-निरीक्षक मुश्ताक अहमद जम्मू-कश्मीर में पिछले करीब छह महीने में आतंकवादी हिंसा के कारण अपनी जान गंवाने वाले 49वें व्यक्ति थे. केंद्रशासित प्रदेश में सुरक्षा बलों द्वारा आतंकवाद विरोधी सफल अभियान चलाए जाने के बावजूद आतंकवादियों द्वारा ‘सॉफ्ट टारगेट’ को निशाना बनाए जाने की घटनाएं बढ़ रही हैं. श्रीनगर के बाहरी इलाके में स्थित लाल बाजार में गश्त के दौरान आतंकवादियों ने पुलिसकर्मियों पर गोली चला दी. हमले में अहमद (56) की मौत हो गई जबकि उनके दो सहकर्मी... कांस्टेबल फयाज अहमद और अबू बाकर... घायल हो गए. अधिकारियों ने बुधवार को बताया कि जम्मू-कश्मीर में जनवरी से अभी तक आतंकवादियों ने प्रदेश के 11 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी है.
वहीं, इस साल सेना के छह कर्मियों और अर्द्धसैनिक बलों के पांच जवानों की भी मौत हुई है. जम्मू-कश्मीर में जनवरी से अभी तक आतंकवादियों ने कुल 22 सुरक्षाकर्मियों की जान ली है. पिछले साल घाटी में कुल 42 सुरक्षा कर्मियों की मौत हुई थी, जिनमें से 21 जम्मू-कश्मीर पुलिस के कर्मी थे. गौरतलब है कि पुलिसकर्मी अहमद का बेटा और आतंकवादियों का सहयोगी अकीब मुश्ताक अप्रैल 2020 में कुलगाम में मुठभेड़ में मारा गया था. आतंकवादियों की हिंसा के शिकार हुए 49 लोगों में 27 आम नागरिक हैं, जिन पर घाटी के अलग-अलग हिस्सों में हमले हुए थे. इस कारण प्रधानमंत्री रोजगार पैकेज के तहत घाटी में तैनात कश्मीरी पंडित व डोगरा कर्मचारियों के बीच दहशत फैल गई. वे कश्मीर से जम्मू तबादले की मांग को लेकर मई से ही हड़ताल पर हैं. पुलिस अधिकारियों के अनुसार, आतंकवादी ज्यादा परेशानी उठाए बिना अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए ‘सॉफ्ट टारगेट’ तलाश रहे हैं. यह भी पढ़ें : सेना में महिलाएं भारत मां की योग्य बेटियां साबित होंगी : राष्ट्रपति कोविंद
अपनी पहचान गुप्त रखने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा कि चूंकि राज्य पुलिस सुरक्षा की पहली पंक्ति का हिस्सा है, इसलिए उसके कर्मी आतंकवादियों के निशाने पर हैं. उन्होंने कहा, ‘‘पुलिसकर्मियों की तैनाती सभी जगहों पर है. वे सुरक्षा की पहली पंक्ति का हिस्सा हैं. सेना अपने शिविरों के भीतर है और सच्चाई है कि सेना अंतिम उपाय है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम हर जगह दिख जाते हैं, हम आसान निशाना हैं. हमें अपने घर जाना होता है, बाजार से सब्जी खरीदनी होती है, बच्चों को स्कूल छोड़ना होता है. हम सॉफ्ट टारगेट हैं.’’ कांस्टेबल गुलाम हसन जैसे कई पुलिसकर्मी आतंकवादियों के हमलों के समय निहत्थे थे. हसन की सात मई को हत्या कर दी गई थी. वहीं कांस्टेबल सैफुल्ला कादरी जैसे पुलिसकर्मी परिवार के साथ थे जब आतंकवादियों ने उनकी जान ले ली. कादरी की उनके घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई. हमले में उनकी सात साल की बेटी जख्मी हो गई थी.