देश की खबरें | अधीनस्थ अदालतों के लिए 'जमानत नियम और जेल अपवाद' सिद्धांत को समझने का यह उपयुक्त समयः न्यायालय

नयी दिल्ली, नौ अगस्त उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि अधीनस्थ अदालतों और उच्च न्यायालयों के लिए यह समझने का यह सही समय है कि "जमानत नियम है और जेल अपवाद।" शीर्ष न्यायालय ने साथ ही यह भी कहा कि अधीनस्थ अदालतें जमानत के मामलों में "सुरक्षित रवैया" अपनाती नजर आती हैं।

न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि "बिल्कुल स्पष्ट मामलों" में भी जमानत नहीं दिए जाने के कारण शीर्ष अदालत में जमानत याचिकाओं की बाढ़ आ गई है, जिससे लंबित मामलों की संख्या में भारी वृद्धि हो गई है।

पीठ ने आम आदमी पार्टी (आप) के वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया को कथित दिल्ली आबकारी नीति घोटाले से जुड़े भ्रष्टाचार और धन शोधन के मामलों में जमानत देते हुए कहा कि उन्हें त्वरित न्याय के उनके अधिकार से वंचित किया गया है क्योंकि 17 महीने जेल में रहने के बावजूद अभी तक मुकदमा शुरू नहीं हुआ है।

शीर्ष अदालत के हाल के एक फैसले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि उसने देखा है कि पिछले कुछ समय से अधीनस्थ अदालत और उच्च न्यायालय कानून के एक बहुत ही स्थापित सिद्धांत को भूल गए हैं कि एक सजा के तौर पर जमानत नहीं रोकी जानी चाहिए।

पीठ ने 38 पन्नों के अपने फैसले में कहा, "हमारे अनुभव से हम कह सकते हैं कि ऐसा लगता है कि अधीनस्थ अदालत और उच्च न्यायालय जमानत देने के मामले में सुरक्षित रवैया अपनाने का प्रयास करते हैं। इस सिद्धांत का कई बार पालन नहीं किया जाता है कि जमानत एक नियम है और इनकार एक अपवाद।"

पीठ ने कहा, "यह सही समय है कि अधीनस्थ अदालत और उच्च न्यायालय इस सिद्धांत को पहचानें कि 'जमानत एक नियम है और जेल अपवाद है'।"

पीठ ने कहा कि जैसा कि बार-बार देखा गया है, किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने से पहले लंबे समय तक कारावास को "बिना मुकदमे के सजा" बनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

सिसोदिया के मामले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दर्ज मामलों में कुल 493 गवाहों के नाम हैं।

पीठ ने कहा कि इन मामलों में हजारों पन्नों के कागजी दस्तावेज और एक लाख से अधिक पन्नों के डिजिटल दस्तावेज शामिल हैं।

पीठ ने कहा, "इस प्रकार यह स्पष्ट है कि निकट भविष्य में मुकदमे के समाप्त होने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है। हमारे विचार में, मुकदमे के शीघ्र पूरा होने की उम्मीद में अपीलकर्ता (सिसोदिया) को असीमित समय तक सलाखों के पीछे रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के उनके मौलिक अधिकार से वंचित करना होगा।"

पीठ ने सिसोदिया को 10 लाख रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की दो जमानतों पर रिहा किए जाने का निर्देश दिया।

दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री को अब रद्द हो चुकी दिल्ली आबकारी नीति 2021-22 के निर्माण और क्रियान्वयन में कथित अनियमितताओं को लेकर 26 फरवरी, 2023 को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था।

ईडी ने उन्हें नौ मार्च, 2023 को सीबीआई की प्राथमिकी से उपजे धनशोधन मामले में गिरफ्तार किया था। उन्होंने 28 फरवरी, 2023 को दिल्ली मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था।

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