जांच एजेंसियां आधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करें, लापता बच्चों की तलाश में मदद मिलेगी : अदालत
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नयी दिल्ली, 9 दिसंबर: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि जांच एजेंसियों को प्रौद्योगिकी प्रगति से अवगत रहना चाहिए ताकि वे परिवारों को फिर से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें और तेजी से डिजिटलीकृत और परस्पर जुड़ी दुनिया में लापता बच्चों और मानव तस्करी से जुड़े मामलों को तेजी से हल कर सकें. उच्च न्यायालय ने कहा कि एक उपयोगकर्ता के अनुकूल त्वरित इस्तेमाल पुस्तिका तैयार की जानी चाहिए जिसमें प्रमुख मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) विवरण शामिल हों, जो दिल्ली भर के हर पुलिस स्टेशन में उपलब्ध होनी चाहिए, जिससे जांच के दौरान त्वरित संदर्भ में सहायता के लिए आसान पहुंच सुनिश्चित हो सके.

न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी आगे बढ़ रही है, अपराधी भी अपने अपराधों का पता लगाने से बचने के लिए आधुनिक तरीके अपना रहे हैं और लापता बच्चों की रिपोर्ट में मानव तस्करी के तत्व शामिल हो सकते हैं. अदालत ने कहा, ‘‘इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि जांच एजेंसियों को समय-समय पर अपने समय, ऊर्जा और संसाधनों का इस्तेमाल न केवल अपनी जांच करने के तरीके की समीक्षा करने के लिए करने बल्कि उन्हें समय-समय पर अपने ही देश से सीखने के लिए कार्यशालाएं और ऑनलाइन या भौतिक व्याख्यान भी आयोजित करनी चाहिए ताकि लापता बच्चों और मानव तस्करी के मामलों की जांच के लिए आधुनिक तकनीक सीख सकें.’’

इसमें कहा गया है कि ज्यादातर जांच एजेंसियां लापता बच्चों और व्यक्तियों के रिश्तेदारों और माता-पिता की आशा हैं और इसलिए, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि उन्हें लापता बच्चों को ढूंढने की विशेष तकनीकों में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. उच्च न्यायालय एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसकी 16 वर्षीय बेटी लापता हो गई थी. याचिका में उसने लापता लड़की को ढूंढने के मामले में पुलिस अधिकारियों द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया में खामियों की ओर इशारा किया था.

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