देश की खबरें | केंद्र को पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने संबंधी समसामयिक डाटा पर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश

नयी दिल्ली, 24 फरवरी उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को केंद्र को निर्देश दिया कि वह सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण उपलब्ध कराने संबंधी आंकड़ों पर अपने पास मौजूद समसामयिक डाटा पर एक हलफनामा दाखिल करे।

न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की पीठ ने कहा कि वह 30 मार्च को दिल्ली और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालयों के निर्णयों से उत्पन्न मामलों की सुनवाई करेगी, जिनकी सूची अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बलबीर सिंह द्वारा प्रदान की जाएगी।

पीठ ने कहा, “इस बीच, भारत संघ को दूसरे पक्ष को एक प्रति दिए जाने के बाद हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है जिसमें समसामयिक कैडर वार डाटा के बारे में विवरण हो। पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता को निर्धारित करने के लिए डाटा पर विचार संबंधी विवरण।’’

शीर्ष अदालत ने 28 जनवरी को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए "कोई भी मानदंड निर्धारित करने" से इनकार करते हुए कहा था कि उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का निर्धारण राज्य के विवेक का मामला है।

इसने कहा था कि न्यायालयों के लिए यह न तो कानूनी है और न ही उचित है कि वे कार्यपालिका को उस क्षेत्र के संबंध में निर्देश या परामर्श उपदेश जारी करें जो संविधान के तहत विशेष रूप से उनके क्षेत्र में है।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘एक राज्य के तहत सेवाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का निर्धारण राज्य के विवेक पर छोड़ा जाता है, क्योंकि निर्धारण असंख्य कारकों पर निर्भर करता है, जिनकी यह न्यायालय परिकल्पना नहीं कर सकता है।’’

वर्ष 2018 में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एम नागराज मामले में 2006 के फैसले को संदर्भित करने से इनकार कर दिया था, जिसमें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए क्रीमी लेयर की अवधारणा को पुनर्विचार के लिए सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ तक विस्तारित कर दिया गया था।

इसने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण देने का मार्ग भी प्रशस्त किया था और 2006 के फैसले को इस हद तक संशोधित किया था कि राज्यों को पदोन्नति में आरक्षण को सही ठहराने के वास्ते इन समुदायों के बीच पिछड़ेपन को दर्शाने वाला "मात्रात्मक डाटा एकत्र करने" की आवश्यकता न हो।

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