नयी दिल्ली, 20 अप्रैल समलैंगिक विवाह के लिए कानूनी मंजूरी के अनुरोध वाली याचिकाओं पर दलील सुन रहे उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि शीर्ष अदालत में मामले इतनी संख्या में आ रहे हैं कि संविधान पीठ के मामलों को तब तक सूचीबद्ध करना असंभव है, जब तक दलीलों में लिये जाने वाले समय की सीमा तय नहीं की जाती।
मामले की सुनवाई कर रही पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि उनसे पहले के प्रधान न्यायाधीशों ने मामलों की संख्या के दबाव की वजह से संविधान पीठ नहीं बनाई थीं।
उन्होंने कहा, ‘‘यदि संविधान पीठ वाकई बनानी हैं तो आप जानते हैं, पांच न्यायाधीशों को अपना नियमित कामकाज छोड़ना होता। इसलिए मुझसे पहले प्रधान न्यायाधीशों ने संविधान पीठों का गठन नहीं किया क्योंकि आप नहीं जानते कि किस तरह का दबाव होता है। हर शाम मैं पूछता हूं कि कितने मामले दायर हुए और कितनों का निस्तारण हुआ।’’
पीठ में न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति एस आर भट्ट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरिसम्हा शामिल हैं।
समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर लगातार तीसरे दिन सुनवाई की शुरुआत में एक वकील ने पीठ को वकीलों की सूची सौंपी जो याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील रखेंगे।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पक्ष को आज शाम तक अपनी दलीलें पूरी करनी होंगी क्योंकि अदालत को दूसरे पक्ष को भी पर्याप्त समय देना है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा, ‘‘आपको पता है, अगर मैं टेलीफोन पर लंबी बातचीत कर रहा होता हूं तो मेरी पत्नी ही मुझसे कहती हैं कि अपना काम कीजिए और बात बंद कीजिए।’’
उन्होंने एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी से दलीलें जारी रखने को कहा।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि सिंघवी अपनी दलीलें 45 मिनट में पूरी कर सकते हैं और उसके बाद अदालत वरिष्ठ अधिवक्ताओं राजू रामचंद्रन तथा के वी विश्वनाथन को डेढ़ घंटे का समय देगी जो भी कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पक्ष रख रहे हैं।
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