मुंबई, 23 जून मुद्रास्फीति अधिक रहने से निजी खपत पर होने वाले खर्च में कमी आ रही है जिसका नतीजा कंपनियों की बिक्री में सुस्ती और क्षमता निर्माण में निजी निवेश में गिरावट के रूप में सामने आ रहा है। रिजर्व बैंक के एक लेख में यह आकलन पेश किया गया है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के नवीनतम बुलेटिन में प्रकाशित इस लेख के मुताबिक, मुद्रास्फीति को कम करने की जरूरत है कि उपभोक्ता व्यय में वृद्धि करने के साथ कंपनियों के राजस्व एवं लाभप्रदता को बढ़ाया जा सके।
केंद्रीय बैंक के डिप्टी गवर्नर माइकल देवव्रत पात्रा की अगुवाई वाली टीम के लिखे इस लेख में मुद्रास्फीति का खपत पर पड़ रहे असर और उसके दुष्प्रभावों का परीक्षण किया गया है। हालांकि आरबीआई का कहना है कि लेख में व्यक्त विचार लेखकों के निजी विचार हैं।
रिजर्व बैंक की तमाम कोशिशों के बावजूद खुदरा मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2022-23 में पांच प्रतिशत से अधिक रही। हालांकि मई में यह घटकर दो साल के निचले स्तर 4.25 प्रतिशत पर आ गई।
इस लेख के मुताबिक, "हाल में आए आर्थिक आंकड़ों और कंपनियों के नतीजों को एक साथ जोड़कर देखें तो यह साफ दिखता है कि मुद्रास्फीति निजी उपभोग पर होने वाले व्यय को कम कर रही है। इसकी वजह से कंपनियों की बिक्री घट रही है और क्षमता निर्माण में निजी निवेश भी कम हो रहा है।"
'अर्थव्यवस्था की स्थिति' पर प्रकाशित लेख कहता है कि मुद्रास्फीति को नीचे लाने और इससे जुड़ी उम्मीदों को स्थिर करने से उपभोग व्यय बहाल होगा और कंपनियों की बिक्री एवं लाभप्रदता भी बढ़ेगी।
आरबीआई बुलेटिन के इस लेख के मुताबिक, वैश्विक मोर्चे पर जहां भारत जैसी अर्थव्यवस्थाएं फिर से तेजी पकड़ रही हैं वहीं कुछ देशों में सुस्ती या गिरावट की स्थिति है।
प्रेम
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