वाशिंगटन, आठ अप्रैल अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक कोष ने कहा है कि कोविड-19 महामारी के दौरान भारत का ऋण-जीडीपी अनुपात 74 प्रतिशत से बढ़कर 90 प्रतिशत हो गया और उम्मीद जताई की आर्थिक सुधार के साथ ही ये घटकर 80 प्रतिशत पर आ जाएगा।
आईएफएफ के राजकोषीय मामलों के विभाग के उप निदेशक पाओलो मौरो ने बुधवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘भारत के मामले में, महामारी से पहले 2019 के अंत में ऋण अनुपात सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 74 प्रतिशत था, और 2020 के अंत में ये बढ़कर जीडीपी का लगभग 90 प्रतिशत हो गया है। यह बहुत बड़ी वृद्धि है, लेकिन दूसरे उभरते बाजारों और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं ने भी ऐसा ही अनुभव किया है।’’
उन्होंने आगे कहा, ‘‘भारत के मामले में हमें उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ ऋण अनुपात धीरे-धीरे नीचे आएगा। मध्यम अवधि में स्वस्थ आर्थिक वृद्धि के साथ ये घटकर 80 प्रतिशत के स्तर तक आ सकता है।’’
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि सबसे पहली प्राथमिकता लोगों और कंपनियों के लिए मदद जारी रखने की है, और खासतौर से सबसे कमजोर लोगों की मदद करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
मौरो ने उम्मीद जताई कि अगले साल भारत के आम बजट में घाटे को कम करने की कोशिश देखने को मिल सकती है।
इसबीच आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने कहा है कि दुनिया दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ी वैश्विक मंदी से जूझ रही है।
उन्होंने बुधवार को आईएमएफ और विश्व बैंक की वार्षिक की शुरुआत में कहा कि आगे हालात बेहतर होने की उम्मीद है, क्योंकि लाखों लोगों को टीकाकरण और नीतिगत समर्थन से फायदा मिल रहा है।
उन्होंने कहा कि पिछले एक साल में कई असाधारण और मिलेजुले कदम उठाए गए।
जार्जिवा ने कहा कि इन राजकोषीय और मौद्रिक उपायों के बिना पिछले साल की वैश्विक मंदी तीन गुना बदतर हो सकती थी।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पास एक अच्छी खबर है कि सुरंग के अंत में रोशनी दिख रही है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ी वैश्विक मंदी की भरपाई हो रही है। जैसा कि आप जानते हैं, कल हमने अपने वैश्विक वृद्धि पूर्वानुमान को छह प्रतिशत तक बढ़ा दिया था।’’
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