नयी दिल्ली, 20 जून देश के समक्ष निकट भविष्य में अपने राजकोषीय घाटे का प्रबंधन, आर्थिक वृद्धि को बनाये रखना, महंगाई तथा चालू खाते के घाटे को काबू में करने की चुनौतियां हैं। हालांकि भारत अन्य देशों के मुकाबले इन चुनौतियों से निपटने को लेकर बेहतर स्थिति में है। वित्त मंत्रालय की मासिक आर्थिक रिपोर्ट में यह कहा गया है।
मासिक आर्थिक समीक्षा के अनुसार निकट भविष्य की चुनौतियों के सावधनीपूर्वक प्रबंधन की जरूरत है ताकि वृहत आर्थिक स्थिरता को कोई जोखिम नहीं हो।
इसके मुताबिक, ‘‘दुनिया के कई देश खासकर विकासशील देश इसी प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। भारत उनमें अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है। इसका कारण वित्तीय क्षेत्र में स्थिरता और कोविड टीकाकरण की सफलता है जिससे अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को खोला जा सका है।’’
इस रिपोर्ट के अनुसार भारत की मध्यम अवधि में वृद्धि संभावना मजबूत बनी हुई है। इसकी वजह निजी क्षेत्र में क्षमता विस्तार की पूर्व योजना का क्रियान्वयन है। इससे मौजूदा दशक की बची हुई अवधि में पूंजी निर्माण को गति मिलने तथा रोजगार सृजन की उम्मीद है।
मासिक आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में प्रस्तावित पूंजीगत व्यय से आर्थिक वृद्धि में तेजी आने की संभावना है। हालांकि डीजल और पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क में कटौती के बाद सकल राजकोषीय घाटे के मोर्चे पर जोखिम भी उत्पन्न हुआ है।
राजकोषीय घाटा बढ़ने से चालू खाते का घाटा बढ़ सकता है। इससे महंगे आयात का प्रभाव बढ़ेगा और रुपये के मूल्य में कमी आएगी। इससे बाह्य असंतुलन बढ़ेगा लिहाजा घाटा बढ़ने तथा रुपये की विनिमय दर में गिरावट का जोखिम है।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘ऐसे में पूंजीगत व्यय के अलावा जो दूसरे खर्च हैं, उन्हें युक्तिसंगत बनाना महत्वपूर्ण हो गया है। यह न केवल वृद्धि को समर्थने देने वाले पूंजीगत व्यय के लिये बल्कि राजकोषीय घाटा बढ़ने से रोकने के लिये भी आवश्यक है।"
हालांकि रुपये के मूल्य में गिरावट का जोखिम बना हुआ है। यह जोखिम तबतक है जबतक विकसित देशों में महंगाई को नियंत्रित में लाने के लिये नीतिगत दर बढ़ने की चिंता से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की शुद्ध रूप से पूंजी निकासी बनी रहती है।
रिपोर्ट के अनुसार भारत में उच्च खुदरा मुद्रास्फीति के पीछे की वजह महंगा आयात है। इसका कारण कच्चे तेल और खाद्य तेल के दाम में तेजी है। इसके अलावा गर्मी ज्यादा रहने से भी घरेलू बाजार में खाद्य पदार्थों के दाम बढ़े हैं।
हालांकि आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल के दाम में कमी आ सकती है। इसकी वजह यह है कि वैश्विक वृद्धि कमजोर हुई है और पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) ने आपूर्ति बढ़ायी है।
आरबीआई की मई 2022 में जारी मौद्रिक नीति के बारे में इसमें कहा गया है कि यह पूरी तरह से अर्थव्यवस्था में बढ़ती महंगाई को काबू में लाने के लिये है।
मुद्रास्फीति को काबू में लाने के लिये रिजर्व बैंक ने रेपो दर बढ़ायी है और बैंकों में उपलब्ध अतिरिक्त नकदी को वापस लेने के लिये कदम उठाया है। खुदरा मुद्रास्फीति चार महीनों से छह प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है। यह आरबीआई के दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत के संतोषजनक स्तर से ऊपर है।
पिछले महीने सरकार ने बढ़ती मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिये पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में क्रमश: आठ रुपये लीटर और छह रुपये लीटर की कटौती की थी। साथ ही उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को हर साल 12 सिलेंडर पर 200 रुपये प्रति सिलेंडर सब्सिडी दी गयी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन उपायों का वृद्धि और मुद्रास्फीति पर प्रभाव आने वाले महीनों के आंकड़ों में सामने आएगा।
इसमें यह भी कहा गया है कि दुनिया में निम्न आर्थिक वृद्धि दर के साथ ऊंची मुद्रास्फीति रहने (स्टैगफ्लेशन) की आशंका जतायी जा रही है लेकिन भारत में इसका जोखिम कम है।
रिपोर्ट के अनुसार अर्थव्यवस्था 2021-22 में महामारी-पूर्व स्तर से बाहर आ गयी। पिछले वित्त वर्ष में वास्तविक जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर 8.7 प्रतिशत रही जो 2019-20 के मुकाबले 1.5 प्रतिशत अधिक है।
देश की जीडीपी 2021-22 में मौजूदा बाजार मूल्य पर अब 236.65 लाख करोड़ रुपये या 3,200 अरब डॉलर पहुंच गयी। वहीं महामारी-पूर्व 2019-20 में यह 2,800 अरब डॉलर थी।
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