मुंबई, सात दिसंबर रेपो दर को 0.35 प्रतिशत बढ़ाने के भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के फैसले को उद्योग जगत एवं विशेषज्ञों ने उम्मीद के अनुरूप उठाया गया कदम बताते हुए बुधवार को कहा कि इससे ब्याज दरों में बढ़ोतरी की रफ्तार आगे कुछ नरम पड़ने के संकेत मिलते हैं।
आरबीआई ने रेपो दर में लगातार तीन बार 0.50 प्रतिशत और उससे पहले मई में 0.40 प्रतिशत की बढ़ोतरी करने के बाद दरों में बढ़ोतरी की रफ्तार को थोड़ा धीमा किया है। अब यह बढ़कर 6.25 प्रतिशत हो चुकी है।
गौरतलब है कि मु्द्रास्फीति लगातार 10वें महीने आरबीआई के सहनशील स्तर से ऊपर बनी हुई है।
उद्योग मंडल फिक्की के अध्यक्ष संजीव मेहता ने कहा कि आरबीआई का रेपो दर में 0.35 प्रतिशत बढ़ोतरी का व्यापक रूप से अनुमान लगाया जा रहा था क्योंकि मुद्रास्फीति के खिलाफ संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है।
उन्होंने कहा, ''वित्त वर्ष 2022-23 के लिए खुदरा मुद्रास्फीति के अनुमान को 6.7 प्रतिशत पर बनाए रखा गया है और क्रमिक आधार पर मुद्रास्फीति के शांत पड़ने के कुछ शुरुआती संकेत सामने आ रहे हैं।''
उद्योग निकाय एसोचैम ने भी कहा कि आरबीआई का नीतिगत दर में 0.35 प्रतिशत की वृद्धि करना उम्मीद के मुताबिक ही है और ऐसे संकेत हैं कि वृद्धि की तीव्रता कुछ नरम पड़ रही है।
एसोचैम के महासचिव दीपक सूद ने कहा, ''वैश्विक अर्थव्यवस्था में जारी चुनौतियों और ऊर्जा कीमतों, आपूर्ति श्रृंखला और भू-राजनीतिक हालात को लेकर अनिश्चितताओं के बावजूद भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है।''
उद्योग निकाय पीएचडी चैंबर ने कहा कि मुद्रास्फीति में कमी आने से आर्थिक वृद्धि को बनाए रखने के लिए एक मिला-जुला नजरिया रखना महत्वपूर्ण होगा।
पीएचडी चैंबर के अध्यक्ष साकेत डालमिया ने कहा, ''उत्पादन बढ़ाने के लिए मांग और उत्पादकों की भावनाओं को फिर से मजबूत करने की जरूरत है।'' रेपो रेट में हालिया बढ़ोतरी का असर उपभोक्ताओं पर पड़ेगा, क्योंकि कर्ज महंगा हो जाएगा।
रिलायंस होम फाइनेंस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) प्रशांत उतरेजा ने कहा कि रेपो रेट में बढ़ोतरी से उधार दरों में मामूली वृद्धि होने की संभावना है, हालांकि इससे अल्पावधि में रियल एस्टेट उद्योग के लिए बाधा नहीं पैदा होगी।
नरसी मोनजी इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज के सहायक प्रोफेसर आनंद बी ने कहा कि हालांकि 2022-23 के लिए वृद्धि दर पूर्वानुमान को संशोधित कर 6.8 प्रतिशत कर दिया गया है, लेकिन केंद्रीय बैंक के पास मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए अपने प्रयासों को जारी रखने की पर्याप्त गुंजाइश है।
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