काठमांडू, 24 मई नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने कहा कि उनके देश का भारत के साथ विशिष्ट व करीबी रिश्ता है और उन्हें विश्वास है कि दोनों पड़ोसियों के बीच कालापानी का मुद्दा बातचीत के जरिये सुलझा लिया जाएगा।
ग्यावली ने अंग्रेजी दैनिक रिपब्लिका को दिये एक साक्षात्कार के दौरान कहा, “हमने हमेशा कहा है कि इस मुद्दे के समाधान का एक मात्र तरीका अच्छी भावना के साथ बातचीत करना है। बिना किसी आवेग या अनावश्यक उत्साह और पूर्वाग्रह के साथ नेपाल बातचीत के जरिये सीमा विवाद को सुलझाना चाहता है।”
उन्होंने कहा, “हमें विश्वास है कि यह मुद्दा द्विपक्षीय बातचीत के जरिये सुलझ जाएगा।” उन्होंने हालांकि लिंपियाधुरा, लिपुलेख का जिक्र नहीं किया जिनके बारे में नेपाल अपना इलाका होने का दावा करता है।
दोनों देशों के बीच रिश्तों में तब तनाव आ गया था जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आठ मई को उत्तराखंड में लिपुलेख दर्रे को धारचुला से जोड़ने वाली रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण 80 किलोमीटर लंबी सड़क का उद्घाटन किया था।
नेपाल ने इस सड़क के उद्घाटन पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए दावा किया था कि यह नेपाली सीमा से होकर जाती है। भारत ने उसके दावे को खारिज करते हुए कहा था कि सड़क पूरी तरह से उसकी सीमा में है।
नेपाल सरकार ने बुधवार को नेपाल का संशोधित राजनीतिक और प्रशासनिक नक्शा जारी किया था जिसमें लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को उसके भू-भाग में दर्शाया गया था जिसपर नाराजगी जताते हुए भारत ने नेपाल से स्पष्ट रूप से कहा था कि वह अपने भूभाग के दावों को अनावश्यक हवा न दे और “मानचित्र के जरिये गैरन्यायोचित दावे” करने से बचे।
विदेश मंत्रालय के सचिव अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, “यह एकपक्षीय कार्यवाही ऐतिहासिक तथ्यों व साक्ष्यों पर आधारित नहीं है। यह कूटनीतिक बातचीत के जरिये मौजूदा सीमा मुद्दों को सुलझाने के संकल्प की द्विपक्षीय समझ के भी विपरीत है। क्षेत्रीय दावों के ऐसे कृत्रिम विस्तार को भारत द्वारा स्वीकार नहीं किया जाएगा।”
नेपाली अखबार को दिये अपने साक्षात्कार में ग्यावली ने कहा की सीमा विवाद नया नहीं है। उन्होंने कहा, “यह इतिहास का अनसुलझा, लंबित और बकाया मुद्दा है जो हमें विरासत में मिला है। यह एक बोझ है और जितनी जल्दी हम इसे सुलझा लेंगे उतनी जल्दी हम अपनी निगाहें भविष्य पर जमा पाएंगे।”
उन्होंने कहा, “नेपाल विश्वास पर आधारित उतार-चढ़ाव से मुक्त रिश्ता चाहता है, दोस्ताना रिश्ता। हम जानते हैं कि हमारे पास इसका कोई विकल्प नहीं है। इसलिये, हमारे सभी प्रयास इतिहास के इस बोझ को समाप्त करने के लिए हैं। हमें विश्वास है कि इस मुद्दे के समाधान का एक मात्र जरिया कूटनीति बातचीत और समझौता है।”
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “हम इस मामले में बातचीत करने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, औपचारिक बातचीत और वार्ता अभी नहीं हुई है।” उन्होंने कहा, “हमें उम्मीद है कि संवाद के औपचारिक व अनौपचारिक माध्यमों से कुछ सकारात्मक सामने आएगा।”
ग्यावली ने विचार व्यक्त किया कि “भारतीय पक्ष भी बेहद चिंतित है और इस मुद्दे के समाधान की जिम्मेदारी को समझता है।” एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “भारत और चीन ने जब 2015 में सड़क खोलने का फैसला किया था तो हमने इस फैसले का विरोध किया था। हमने नेपाली जमीन को बिना हमारी इजाजत इस्तेमाल करने के द्विपक्षीय समझौते पर आपत्ति जताई थी।”
ग्यावली ने कहा, “भारत ने जब 2 नवंबर 2019 को नया राजनीतिक नक्शा प्रकाशित कर नेपाली जमीन को अपने नक्शे में दिखाया था तो हमने उसका विरोध किया था। हमने नयी दिल्ली को बातचीत के लिये दो संभावित तारीखें भी दी थीं, लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया। ”
मंत्री ने कहा, “इसके बाद हमने भारत और चीन दोनों को 2015 में कूटनीतिक नोट भेजा और फिर 2019 में भारत को नोट भेजकर नेपाली जमीन बिना उसकी इजाजत के इस्तेमाल करने के फैसले पर विरोध जताया था।”
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “हमारे दो पड़ोसी हैं और हम एक के लिए दरवाजा खोलने और दूसरे के लिए दरवाजा बंद करने का काम नहीं करेंगे। यह वर्षों से हमारी स्थापित स्थिति रही है। हमारे लिये दोनों ही पड़ोसी समान महत्व रखते हैं।”
सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने कहा था कि ऐसी आशंका है कि नेपाल ने किसी और के कहने पर सड़क को लेकर आपत्ति जताई है। उनका इशारा संभवत: चीन को लेकर था।
ग्यावली ने कहा, “मैं भारत और नेपाल के सीमा विवाद के बीच किसी अन्य देश को घसीटे जाने को पूरी तरह खारिज करता हूं। लिपुलेख को लेकर चीन के साथ हमारा विवाद है और यह मुद्दा अभी लंबित है।”
उन्होंने कहा, “यह द्विपक्षीय मुद्दा है और भारत व नेपाल को इसे सुलझाना चाहिए।” उन्होंने कहा, लेकिन किसी बिंदु पर तीनों देशों को बातचीत के लिए बैठना होगा।
उन्होंने कहा, “जब हम नेपाल-भारत सीमा विवाद सुलझालेंगे तब हमें ‘तीनों के मिलन स्थल’ को अंतिम रूप देने के लिए काम करना होगा। लेकिन वह बाद में होगा।”
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