विनाशकारी एलियन प्रजातियों से जंग हार रहा है इंसान
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

फसलों और वनों की बर्बादी, बीमारियों और इकोलॉजी को नुकसान पहुंचाने वाले कीट-पतंगों की संख्या पहले से कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ रही है और इंसान उनके खिलाफ जंग हारता नजर आ रहा है.इस साल जनवरी में आर्मी वर्म कीट ने भारत में मक्के की फसल पर कहर बरपाया. इससे पहले पिछले साल अमेरिकन सुंडी का हमला हुआ था. ऐसे हमले अक्सर होते हैं और सैकड़ों एकड़ खड़ी फसल एकाएक बर्बाद हो जाती है.

एक ताजा शोध बताता है कि एलियन प्रजाति कहे जाने वाले ये हमलावर कीट अपनी आबादी को पहले से कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ा रहे हैं और इंसान उनसे मुकाबला नहीं कर पा रहा है.

इस कारण हर साल लगभग 400 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा है, जो डेनमार्क या थाईलैंड की पूरी जीडीपी के बराबर है. यूएन कन्वेंशन ऑन बायोडाइवर्सिटी के वैज्ञानिकों का एक पैनल मानता है कि नुकसान इस अनुमान से कहीं ज्यादा है.

पूर्वी अफ्रीका में विक्टोरिया झील के पानी को दूषित करने से लेकर प्रशांत में पक्षियों की प्रजातियों को खत्म करते सांप और चूहे या जीका वायरस, डेंगू और पीला बुखार जैसी बीमारियां फैलाने वाले मच्छरों तक दुनिया के लगभग हर हिस्से में इन एलियन प्रजातियों का कहर बरप रहा है.

हजारों प्रजातियां, असंख्य जीव

ताजा शोध में वैज्ञानिकों ने ऐसे 37,000 हानिकारक कीटों की सूची बनायी है. शोध बताता है कि ये जीव अपने मूल स्थानों से दूर-दूर तक पहुंच चुके हैं और इनकी आबादी तेजी से बढ़ रही है. 1970 के मुकाबले अब इन एलियन जीवों द्वारा पहुंचाया गया नुकसान कई गुना तक बढ़ चुका है.

रिपोर्ट कहती है, "आर्थिक विस्तार, आबादी और जलवायु परिवर्तन इन कीटों के हमलों की संख्या और प्रभाव दोनों को और बढ़ाएगी.” रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में बहुत कम देश इन हमलों को झेलने के लिए तैयार हैं. सिर्फ 17 फीसदी देश ऐसे हैं जहां इस तरह के हमलों के बारे में कानून या नीतियां हैं.

इन कीटों को एलियन प्रजाति इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनका मूल जन्म कहीं और होता है और वे लक्ष्य करके या फिर गलती से दूसरी जगहों पर पहुंच जाते हैं. लेकिन रिपोर्ट कहती है कि जब ये कीट दुनिया के किसी हिस्से पर हमला करते हैं, तो उनकी वजह इंसानी गतिविधियां ही होती हैं.

वैज्ञानिकों ने कहा है कि इन प्रजातियों का इतनी तेजी से विस्तार इस बात का सबूत है कि मानवीय गतिविधियों ने बहुत तेजी से कुदरती व्यवस्था को बदला है. इन बदलावों के कारण पृथ्वी अब नये भूगौलिक समय-काल में पहुंच गयी है, जिसे एंथ्रोपोसीन नाम दिया गया है.

दुनियाभर में उदाहरण

इन जीवों के कारण होने वाले नुकसान बड़ा उदाहरण पूर्वी अफ्रीका की विक्टोरिया झील है, जो एक वक्त में 90 फीसदी तक काई से ढक गयी थी. इस कारण जलीय जीवन तो प्रभावित हुआ ही, यातायात से लेकर पनबिजनी परियोजना तक को नुकसान हुआ. माना जाता है कि रवांडा में इस कीट को लाने वाले बेल्जियम के लोग थे. रवांडा पर राज कर रहे बेल्जियम अफसरों ने अपने घरों की बगिया में इन्हें उगाया था, जो 1980 के दशक में कागरा नदी में पहुंच गया.

इसी तरह 19वीं सदी में अंग्रेज अपने साथ खरगोश लेकर न्यूजीलैंड पहुंच गये थे. वे शिकार और भोजने के लिए खरगोश लेकर गये थे जिनकी आबादी इतनी तेजी से बढ़ी कि द्वीपीय देश के लिए उन्हें संभालना मुश्किल हो गया. फिर उन्हें खत्म करने के लिए स्टोटा लाये गये. लेकिन उन शिकारी जीवों ने खरगोशों के बजाय आसान शिकार जैसे कि छोटे स्थानीय पक्षियों और कीवियों को निशाना बनाया. इस कारण पक्षियों की कई प्रजातियां खत्म हो गईं. अब न्यूजीलैंड इन जीवों को खत्म करने के लिए अभियान चला रहा है.

बहुत बार इन एलियन प्रजातियों का दूसरी जगहों पर पहुंचना किसी हादसे की वजह से भी होता है. जैसे कि वे मालवाहक जहाजों के जरिये दूसरी जगहों पर पहुंच जाते हैं. कई बार पर्यटकों के सामान में भी वे विदेशों में पहुंच जाते हैं. मसलन भूमध्य सागर में अब बाहरी पौधों और मछलियों की भरमार हो गयी है. लायनफिश या घातक काई जैसे ये जीव लाल सागर से स्वेज नहर के रास्ते भूमध्य सागर में पहुंच गये.

मुश्किल है लड़ाई

यूएन की रिपोर्ट कहती है कि खत्म हो चुकीं पौधों और जीवों की प्रजातियों में के विनाश में से 60 फीसदी में एलियन कीटों ने अहम भूमिका निभायी है. वे ग्लोबल वॉर्मिंग, प्रदूषण और पारिस्थितिकी तंत्र के विनाश के भी कारण बने हैं. मसलन, पिछले महीने अमेरिका के हवाई में लगी जंगलों की आग की बड़ी वजह एक सूखी घास थी, जो दशकों पहले मवेशियों को खिलाने के लिए आयात की गयी थी. अब वह घास आस-पास पड़े खाली खेतों में फैल चुकी है.

पिछले साल दिसंबर में जैव विविधता की सुरक्षा के लिए एक वैश्विक संधि हुई थी, जिसमें एलियन प्रजातियों को 2030 तक आधा कर देने का लक्ष्य रखा गया था. रिपोर्ट कहती है कि इस विनाश को रोकने के लिए तीन मुख्य तरीके हो सकते हैं. पहला है बचाव, उसके बाद जड़ से विनाश. और जब ये काम ना करें तो नियंत्रण.

आमतौर पर इन जीवों को नष्ट करने की कोशिशें नाकाम रही हैं. जैसे कि छोटे द्वीपों से चूहों को खत्म करने की कोशिशें लगभग विफल रही हैं.

वीके/सीके (रॉयटर्स, एपी)