
बचपन में यौन शोषण के शिकार हुए लोगों के लिए माता-पिता बनना और अपने बच्चों को पालना कैसा अनुभव होता है? एक नए अध्ययन में इसी बात पर ध्यान केंद्रित किया गया है.जर्मनी में ‘इंडिपेंडेंट इन्क्वायरी इनटू चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज' आयोग ने बाल यौन शोषण को लेकर एक अध्ययन किया है. इस अध्ययन में शामिल पीड़ितों में से एक एवा अना योहानसन कहती हैं, "बहुत से पीड़ित इस बात को लेकर काफी ज्यादा चिंतित रहते हैं कि उन्हें बच्चे पैदा करने चाहिए या नहीं, क्योंकि उन्हें बहुत डर लगता है कि अगर मेरे बच्चों के साथ भी ऐसा हो गया तो? क्या होगा अगर मैं अपने बच्चों की सही से सुरक्षा नहीं कर पाऊं?”
योहानसन के साथ भी बचपन में शोषण हुआ था. वह उत्तरी जर्मनी में ब्रेमेन के पास पली-बढ़ी थीं. तीन साल की उम्र से ही उनके दादा और परिवार के अन्य सदस्यों ने उनका यौन शोषण किया था. मानसिक अस्पतालों में मुश्किल भरे दौर से गुजरने के बाद, योहानसन ने स्कूल की पढ़ाई पूरी की, विश्वविद्यालय गईं, शादी की और बच्चे पैदा किए.
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हालांकि, अपने पहले बच्चे को जन्म देने के अनुभव ने उनके पुराने दुर्व्यवहार के दर्द को फिर से ताजा कर दिया. उन्होंने बताया, "मैं पूरी तरह से हैरान रह गई. मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे साथ एक वस्तु की तरह व्यवहार किया जा रहा है. यह मेरे और मेरी जरूरतों के बारे में बिल्कुल नहीं था. मेरे बारे में बातें की जा रही थीं, पर मुझसे नहीं.”
चिकित्सा कर्मचारियों में जागरूकता की कमी
योहानसन ने बच्चे को जन्म देते समय डॉक्टरों के व्यवहार और बचपन में हुए दुर्व्यवहार के बीच एक समानता देखी, जिसमें बेबसी की वही भावना शामिल थी जो उन्होंने बचपन में महसूस किया था. जन्म के रास्ते को बड़ा करने के लिए की जाने वाली एक चिकित्सा प्रक्रिया, जिसे एपिसीओटॉमी कहते हैं, उनके लिए बहुत दर्दनाक थी.
उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "मुझे आगाह किए बिना ही बच्चे को बाहर निकालने के लिए मेरे शरीर में चीरा लगा दिया गया. मुझे लगता है कि यह दुर्व्यवहार जैसा ही है. आपको बस इस बात से खुश होना चाहिए कि बच्चा स्वस्थ है और इस पर खुशी मनानी चाहिए.”
अध्ययन के लेखकों ने बचपन में यौन शोषण की शिकार 600 से अधिक पीड़ितों के बीच सर्वे किया. इन पीड़ितों में 20 से 70 वर्ष की आयु के बीच के लोग शामिल हैं, जिनमें से 84 फीसदी महिलाएं थीं.
उनका यह मानना है कि बच्चे के जन्म के दौरान होने वाली हिंसा और अपमान, स्वास्थ्य, समाज, एवं महिलाओं की नीतियों से जुड़ा एक बहुत बड़ा मुद्दा है. इस समस्या से निपटने के लिए, विशेष रूप से दर्दनाक अनुभवों के प्रति संवेदनशील प्रशिक्षण और पूरी पेशेवर सहायता सेवाओं की जरूरत है.
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अध्ययन के लेखकों में से एक समाजशास्त्री बारबरा कावेमान कहती हैं, "बच्चे को जन्म देते समय इन मामलों में संवेदनशीलता नहीं दिखाई जाती और यह एक आम समस्या है, सिर्फ उन महिलाओं के लिए नहीं जिनका यौन शोषण हुआ है, बल्कि सभी महिलाओं के लिए लेकिन पीड़ित महिलाओं पर इसका ज्यादा असर पड़ता है.”
पीड़ितों के लिए ज्यादा सहायता प्रणालियों की जरूरत
इस अध्ययन में नीति-निर्माताओं और दाइयों जैसे देखभाल करने वाले पेशेवरों के लिए कई सुझाव दिए गए हैं, ताकि पीड़ितों को परिवार नियोजन और माता-पिता के रूप में उनके रोजमर्रा के जीवन में बेहतर मदद मिल सके. इसमें किंडरगार्टन और स्कूलों में बच्चों के लिए विशेष सहायता भी शामिल है.
कावेमान कहती हैं, "दर्द भरे अनुभव अगली पीढ़ी में भी जा सकते हैं, लेकिन ऐसा होना जरूरी नहीं है. खतरा यह नहीं है कि माता-पिता ने हिंसा झेली है, खतरा यह है कि उन्हें सही मदद नहीं मिलती और उन्हें अकेला छोड़ दिया जाता है.”
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अध्ययन में शामिल लोगों, खासकर पुरुषों ने एक और चिंता जताई कि उन्हें डर था कि उन्हें दोषी माना जा सकता है. इसी वजह से वे न सिर्फ बच्चे पैदा करने से डरते हैं, बल्कि जरूरी मदद लेने से भी पीछे हटते हैं. कावेमान ने बताया, "उन्हें डर लगता है कि अगर वो परामर्श केंद्रों, युवा कल्याण और दूसरी संस्थाओं से मदद मांगेंगे, तो उन्हें हिंसा का शिकार समझकर बुरा समझा जाएगा और उन्हें कहा जाएगा कि वो अपने बच्चों की देखभाल नहीं कर सकते.”
बच्चों के खिलाफ यौन शोषण का ज्यादातर मामला परिवार के भीतर होता है, और सर्वे में शामिल लगभग एक चौथाई माता-पिता ने बताया कि उनके लिए अपने बच्चों को दुर्व्यवहार करने वाले के संपर्क में आने से बचाना मुश्किल होता है. एक सुझाव यह है कि जिन लोगों का पारिवारिक सहारा छूट गया है उनके लिए बेहतर सहायता नेटवर्क तैयार किया जाए. पारिवारिक सहायता छूटने की कई वजहें हो सकती हैं. जैसे, उन्हें समाज से बाहर कर दिया गया हो या उन्होंने खुद दूरी बना ली हो, क्योंकि उनका परिवार दुर्व्यवहार करने वाले से दूर नहीं होना चाहता.
कावेमान ने आगे बताया, "स्वयं सहायता समूह भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. परिवार नियोजन और परामर्श केंद्रों के कर्मचारियों को इस विषय के बारे में ‘लगभग कुछ भी नहीं' पता है.”
कावेमान के मुताबिक, माता-पिता के लिए यह भी जरूरी है कि जब बच्चे सोचने-समझने की उम्र में पहुंचें तो उन्हें बताएं कि अतीत में क्या हुआ था और सवालों के जवाब देने में सक्षम हों, जिससे माता-पिता और बच्चों दोनों का बोझ हल्का हो जाता है. वह कहती हैं, "बच्चे इन सब चीजों से निपट सकते हैं, बस उन्हें यह पता होना चाहिए और दिखना चाहिए कि उन्हें और उनके माता-पिता को मदद पाने का हक है. सबसे जरूरी बात, उन्हें यह पता हो कि ये उनकी गलती नहीं है.”
योहानसन इस बात से सहमत हैं कि जब वह आखिरकार बच्चों से अपने अतीत के बारे में बात करने में सक्षम हुईं, तो उनके लिए बहुत कुछ बदल गया. वह कहती हैं, "यह तब शुरू हुआ जब मैंने उन्हें बताया कि मैं अच्छा महसूस कर रही हूं. इसके पीछे एयन में इसी बात पर ध्यान केंद्रित किया गया है.