उत्तरी गोलार्ध में इस साल जितनी गर्मी पड़ी है, इतिहास में अब तक कभी नहीं पड़ी. अगस्त अब तक का सबसे गर्म महीना रहा है.संयुक्त राष्ट्र की संस्था विश्व मौसम संगठन (WMO) ने कहा है कि बीता अगस्त इतिहास का सबसे गर्म महीना रहा है. उत्तरी गोलार्ध में इस साल पड़ी गर्मी ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं और जून व जुलाई के बाद अगस्त में लगातार सबसे अधिक तापमान दर्ज किया गया है.
जब से वैज्ञानिकों ने आधुनिक उपकरणों की मदद से तापमान का रिकॉर्ड रखना शुरू किया है, अगस्त में इतनी गर्मी कभी नहीं पड़ी. जुलाई 2023 के बाद यह इतिहास का सबसे गर्म महीना भी दर्ज किया गया. यूरोपीयन यूनियन के मौसम संगठन कॉपरनिकस और डब्ल्यूएमओ ने बुधवार को जारी एक साझा बयान में ये ऐलान किये.
इन संस्थाओं के मुताबिक ओद्यौगिक क्रांति के पहले के मुकाबले अगस्त का महीना 1.5 डिग्री ज्यादा गर्म रहा. 2015 में पेरिस समझौते के तहत 1.5 डिग्री सेल्सियस की इस सीमा को ही सदी के आखिर तक की अधिकतम सीमा माना गया था.
लेकिन वैज्ञानिकों की चिंता इससे कहीं ज्यादा बड़ी है. उन्हें आने वाले एक दशक का डर सता रहा है जबकि तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो हालात कहीं ज्यादा खराब हो सकते हैं.
महाविनाश के संकेत
मौसम विज्ञानियों ने कहा कि इस साल महासागरों ने भी गर्मी के नये रिकॉर्ड स्थापित किये हैं. धरती के 70 फीसदी हिस्से को ढकने वाले महासागरों का तापमान अब तक का सबसे अधिक रहा है. यह औसतन 21 डिग्री सेल्सियस रहा और लगातार तीन महीने तक नया रिकॉर्ड बना.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने कहा, "यह बढ़ती गर्मी सिर्फ भौंकने वाला कुत्ता नहीं रह गया है. यह कुत्ता अब काटने लगा है. जलवायु महाविनाश शुरू हो गया है.”
2023 अब तक का दूसरा सबसे गर्म साल रहा है. कॉपरनिकस के मुताबिक अभी तक 2016 इतिहास के सबसे गर्म साल के रूप में दर्ज है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बढ़ते तापमान के लिए मानवीय गतिविधियां ही जिम्मेदार हैं. कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल को अब अल नीनो प्रभाव का साथ भी मिल गया है और तापमान लगातार ऊपर जा रहा है.
मौसम विज्ञानी एंड्रयू वीवर कहते हैं कि डब्ल्यूएमओ और कॉपरनिकस द्वारा जारी तापमान के नये आंकड़े उन्हें हैरान नहीं करते. वह कहते हैं कि दुनियाभर में सरकारें जलवायु परिवर्तन के मुद्देको ज्यादा गंभीरता से नहीं ले रही हैं. वह चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं कि जब सर्दी में तापमान कम होगा तो आम जनता इस गर्मी को भूल जाएगी.
कनाडा में विक्टोरिया यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ अर्थ एंड ओशन साइंस में प्रोफेसर वीवर कहते हैं, "अब जरूरत ये है कि नेता अपनी जनता को सच बताएं कि हम तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर नहीं रोक पाएंगे. हम 2 डिग्री पर भी नहीं रुकेंगे. अब सारा मामला 3 डिग्री तक जाने से रोकने का हो गया है. वह ऐसी सीमा है जो पूरी दुनिया में महाविनाश लेकर आएगी.”
सिर्फ रिकॉर्ड नहीं टूट रहे
यूरोपीय संघ के अंतरिक्ष कार्यक्रम के एक विभाग के तौर पर काम करने वाली संस्था कॉपरनिकस के पास 1940 से अब तक के रिकॉर्ड दर्ज हैं. लेकिन युनाइटेड किंग्डम और अमेरिका के पास 19वीं सदी के मध्य से रिकॉर्ड उपलब्ध हैं. अनुमान है कि वे एजेंसियां जल्द ही ऐलान कर सकती हैं कि अगस्त इतना गर्म उनके रिकॉर्ड में कभी नहीं रहा.
कॉपरनिकस के जलवायु परिवर्तन प्रभाग के निदेशक कार्लोस बुओनटेंपो कहते हैं, "जो हम देख रहे हैं, यानी ना सिर्फ तापमान के नये रिकॉर्ड बल्कि इन रिकॉर्ड-तोड़ हालात का लगातार बने रहना और हमारे ग्रह व लोगों पर उसके प्रभाव, वे जलवायु व्यवस्था के गर्म होते जाने के नतीजे हैं.”
माएन यूनिवर्सिटी के क्लाइमेट रीएनालाइजर के मुताबिक अब तक सितंबर में जो तापमान देखा गया है वह भी पिछले साल से ज्यादा बना हुआ है.
वीके/सीके (एपी, रॉयटर्स)