देश की खबरें | सहारा प्रमुख के खिलाफ आदेश जारी करने में उच्च न्यायालय ने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया: न्यायालय

नयी दिल्ली, 13 जुलाई उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय को व्यक्तिगत तौर पर पेश होने का निर्देश देकर पटना उच्च न्यायालय ने अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि अन्य लोगों की अग्रिम जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान इस तरह का आदेश जारी करके उच्च न्यायालय ने अपने अधिकार क्षेत्र की सीमा लांघी है। शीर्ष अदालत ने कहा कि सुब्रत रॉय उस मामले में आरोपी नहीं थे, जो पटना उच्च न्यायालय के समक्ष था।

न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने कहा, ‘‘यह गलत चलन है, जो बढ़ रहा है। जमानत के लिए दायर याचिका में आप उन मामलों की जांच करते हैं जो जमानत पर विचार के लिए अप्रासंगिक हैं। जमानत के लिए यह कैसे प्रासंगिक हो सकता है? या तो आप जमानत खारिज करें या मंजूर करें।’’

शीर्ष अदालत ने इससे पहले उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें उसने (अदालत ने) समूह की कुछ कंपनियों द्वारा निवेशकों का पैसा वापस नहीं करने को लेकर बिहार के पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया था कि वह सहारा प्रमुख को अदालत के समक्ष निजी तौर पर पेश करें।

पीठ ने आज की सुनवाई के दौरान कहा कि उच्च न्यायालय को अन्य मुकदमों में इस तरह के आदेश पारित करने चाहिए थे, न कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438 के तहत अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करते वक्त।

सीआरपीसी की धारा 438 गिरफ्तारी की आशंका से बचने के लिए जमानत के निर्देश से संबंधित है।

न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर ने कहा, ‘‘अपने 22 साल के अनुभव में मैंने एक चीज सीखी है कि यह आपके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।’’ पीठ ने कहा, ‘‘हम यह नहीं कह रहे हैं कि उच्च न्यायालय ऐसा नहीं कर सकता। यह (अदालत) कर सकता है, लेकिन उचित प्रारूप और अधिकार क्षेत्र के तहत। (धारा) 438 में नहीं।’’

बिहार सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि उच्च न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने रॉय को अभियुक्त नहीं बनाया है, बल्कि इसने उन्हें योजना पेश करने को कहा है कि आखिरकार वह निवेशकों का पैसा कैसे लौटाएंगे।

पीठ ने कहा, ‘‘हम केवल यह कह रहे हैं कि ऐसा (धारा) 438 के तहत नहीं किया जाना चाहिए था।’’ न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय ने अग्रिम जमानत का अनुरोध किया था और अदालत को केवल इस मामले पर विचार करना चाहिए था कि क्या जमानत मंजूर करने के लिए कोई प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘यदि इस तरह का आदेश सत्र अदालत की ओर से दिया जाता तो उच्च न्यायालय उस सत्र न्यायाधीश को आड़े हाथों लेता और यहां तक कि उसे न्यायिक अकादमी में जाने की सलाह भी देता।’’

शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई बृहस्पतिवार के लिए स्थगित कर दी।

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