नयी दिल्ली, सात मई दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों को किताबें मिलने में देरी को लेकर शहर के अधिकारियों से सवाल किया और कहा कि शैक्षणिक वर्ष का पहला सत्र करीब करीब किताबों के बिना ही बीत गया है।
अदालत ने अधिकारियों से पुस्तकों के वितरण में देरी का कारण पूछा, जबकि सरकार ही पुस्तकों के प्रकाशन और वितरण पर पैसा खर्च कर रही है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पी एस अरोड़ा की पीठ ने पूछा, “ ऐसा क्यों हो रहा है? जब आप पैसे खर्च कर रहे हैं, किताबें बांट रहे हैं, तो आपको देरी से क्यों बांटना चाहिए? समय पर क्यों नहीं बांट सकते? इस साल ऐसी क्या गलती हुई कि किताबें समय पर नहीं बांटी गईं।”
पीठ ने कहा, “सरकार वितरण और प्रकाशन पर पैसा खर्च कर रही है। इस पर खर्च करने का क्या फायदा जब हम इसका अभी इस्तेमाल न कर सकें।”
जब अदालत को बताया गया कि कुछ कक्षाओं के पाठ्यक्रम में बदलाव के कारण देरी हुई है, तो अदालत ने टिप्पणी की कि "निजी स्कूलों में पढ़ाई चल रही होगी।"
पीठ ने कहा, "एक अप्रैल से 10 मई तक, पहला सत्र लगभग समाप्त हो चुका है आपके खुद के बयान के अनुसार विद्यार्थियों के पास किताबें नहीं हैं।”
अदालत इस मुद्दे पर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
सुनवाई में मौजूद दिल्ली सरकार के एक अधिकारी ने अदालत को आश्वस्त किया कि नयी पुस्तकों के वितरण में देरी के बावजूद कक्षाओं में पढ़ाई चल रही है, क्योंकि पुरानी पुस्तकें स्कूलों को उपलब्ध करा दी गई हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि नौवीं से 12वीं तक के विद्यार्थियों को पुस्तकें खरीदने के लिए धनराशि वितरित करने के वास्ते संबंधित विभाग की योजना शाखा को कोष भेज दिया गया है।
याचिकाकर्ता एनजीओ सोशल ज्यूरिस्ट की ओर से पेश हुए अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने कहा कि पहली से 12वीं कक्षा तक के कई विद्यार्थियों को अब तक पुस्तकें या किताबें और वर्दी खरीदने के लिए धनराशि नहीं मिली है।
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