बंबई हाईकोर्ट ने 23 सप्ताह से ज्यादा समय की अविवाहित गर्भवती को गर्भपात करने की दी इजाजत
बंबई उच्च न्यायालय ने 23 सप्ताह से ज्यादा समय से गर्भवती एक अविवाहित युवती को गर्भपात की इजाजत दे दी. अदालत का कहना है कि शादी से पहले बच्चे को जन्म देने से उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा. पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता का कहना है कि वह बंद की वजह से किसी डॉक्टर से नहीं मिल पाईं.
मुंबई, 4 जून: बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने 23 सप्ताह से ज्यादा समय से गर्भवती एक अविवाहित युवती को गर्भपात की इजाजत दे दी. अदालत का कहना है कि शादी से पहले बच्चे को जन्म देने से उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा. चिकित्सकीय गर्भपात अधिनियम (MTP) 20 सप्ताह से अधिक समय में गर्भपात की इजाजत नहीं देता है.
न्यायमूर्ति एस जे काठवल्ला और न्यायमूर्ति सुरेंद्र तवाड़े ने मंगलवार को यह आदेश दिया और यह भी संज्ञान में लिया कि महाराष्ट्र के रत्नागिरी की रहने वाली 23 वर्षीय युवती कोरोना वायरस महामारी को रोकने के लिए लागू बंद की वजह से 20 सप्ताह के भीतर गर्भपात के लिए डॉक्टर से संपर्क नहीं कर पायी थी. पीठ ने शुक्रवार को उसे एक चिकित्सा केंद्र में इस प्रक्रिया से गुजरने की अनुमति दे दी.
याचिका के बाद 29 मई को उच्च न्यायालय ने रत्नागिरी में एक सरकारी अस्पताल के चिकित्सा बोर्ड को युवती की जांच का निर्देश दिया था ताकि यह पता लगाया जा सके कि इस प्रक्रिया से उसके स्वास्थ्य को कोई खतरा तो नहीं है. पिछले सप्ताह दायर याचिका में कहा गया है कि वह 23 सप्ताह से ज्यादा समय से गर्भवती है. याचिका में युवती ने कहा कि वह आपसी सहमति से बने शारीरिक संबंध से गर्भवती हुई है. अविवाहित होने की वजह से वह इस गर्भ को नहीं रख सकती है क्योंकि इस बच्चे को जन्म देने से वह ‘सामाजिक उपहास’ का शिकार होगी.
युवती ने अपनी याचिका में कहा कि ‘वह अविवाहित एकल अभिभावक के रूप में बच्चा नहीं संभाल सकती है.’ याचिका में युवती ने कहा कि अगर वह गर्भपात नहीं कराती है तो उसे सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ेगा और भविष्य में उसे शादी करने में भी दिक्कत आएगी और वह मानसिक रूप से भी मां बनने के लिए तैयार नहीं हैं. युवती ने कहा कि बंद की वजह से वह इस संबंध में डॉक्टर से संपर्क नहीं कर पाईं.
एमटीपी अधिनियम में डॉक्टर से संपर्क के बाद 12 सप्ताह तक का गर्भपात कराया जा सकता है. वहीं 12 से 20 सप्ताह के बीच गर्भपात कराने के लिए दो डॉक्टरों की सहमति आवश्यक है. वहीं 20 सप्ताह के बाद कानूनी तौर पर तभी गर्भपात की मंजूरी मिल सकती है जिसमें मां को स्वास्थ्य और जीवन का खतरा हो. उच्च न्यायालय ने कहा कि मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता के शारीरिक स्वास्थ्य पर इसका कोई खतरा नहीं है लेकिन संभव है कि इससे उसके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़े.
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता का कहना है कि वह बंद की वजह से किसी डॉक्टर से नहीं मिल पाईं. युवती का कहना है कि पहले ही अनचाहे गर्भ की वजह से वह काफी मानसिक और शारीरिक परेशानी का सामना कर चुकी हैं. पीठ ने कहा कि वह इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि युवती का इस गर्भ के साथ आगे बढ़ना उसके शारीरिक और मानसिक स्थिति के लिए खतरा है.
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