नयी दिल्ली, 13 मार्च दिल्ली उच्च न्यायालय ने अधिकारियों को यहां मजनू का टीला इलाके में स्थित पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी शिविर को ढहाए जाने के प्रस्ताव के संबंध में कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने चार मार्च के सार्वजनिक नोटिस के खिलाफ दायर एक याचिका पर दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। क्षेत्र में लगाए गए नोटिस में निवासियों को शिविर खाली करने का निर्देश दिया गया है, ऐसा न करने पर इसे ध्वस्त करने की चेतावनी दी गई है।
मंगलवार को पारित एक अंतरिम आदेश में, अदालत ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित पाकिस्तानी नागरिकों की मदद से जुड़े एक अन्य मामले में केंद्र की ओर से पहले एक बयान दिया गया था।
अदालत ने मामले को 19 मार्च को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हुए कहा, "भारत के तत्कालीन अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने बयान दिया था कि भारत संघ पाकिस्तान से भारत में प्रवेश करने वाले हिंदू समुदाय को हरसंभव सहायता देने का प्रयास करेगा। डब्ल्यूपी(सी) संख्या 3712/2013 में दिनांक 29 मई, 2013 के आदेश में दर्ज इस बयान पर गौर करते हुए सुनवाई की अगली तारीख तक याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया जाता है।”
याचिकाकर्ता ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 को विशेष रूप से मद्देनजर रखते हुए मजनू का टीला इलाके में पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी शिविर को तब तक हटाने या ध्वस्त नहीं करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है, जब तक कि उसके लिए वैकल्पिक भूखंड आवंटित नहीं किया जाता। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए प्रताड़ित गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को संरक्षण मिला हुआ है।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि वर्षों से मजनू का टीला में रह रहे पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थियों को अधिकारियों द्वारा बुनियादी सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं, और उनके बच्चे पास के सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं।
डीडीए के वकील ने कहा कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने यमुना डूब क्षेत्र में गुरुद्वारा मजनू का टीला के आसपास से सभी अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया है।
उन्होंने कहा कि डीडीए को याचिकाकर्ता से सहानुभूति हो सकती है, लेकिन यह न्यायिक आदेशों को लेकर बाध्य है।
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